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पुरानी कन्नड़ लिपि
अनेक अक्षरों में जो परिवर्तन हुए हैं उनमें अत्यंत महत्त्वपूर्ण निम्नलिखित हैं :
1. ए (फल. VIII, 8, VI, VIII), च (16, VI-IX), भ (33, VI-IX), व 38, VII-IX) के सिरों का खुल जाना । भ स्तं. IX में दोनों आधार लकीरें के मिल जाने से ब की तरह का हो जाता है । म का फंदा (34, VI, VIII) और छ का दायां हिस्सा भी खुल जाता है (17, VIIX, स्त. V से भी तुलना कीजिए ) ।
2. अ, आ (1, 2, VII-IX), और इ; ई (3, 4, VI-IX) और श (39, VII-IX) के रूप घसीट कर लिखने से फंदेदार बन गये हैं। (मिला. इ और ई के पूर्व रूप, 3, II और 4, III, V ) । श की अर्गला दाए भाग के भंग वाले किनारे से जुड़ गई है।
3. क (11, VI-IX) और र (36, VI-IX) के सुदृढ़ फंदे वृतों में बदल गये हैं। ___4. ण (24, VI-IX), न 29, VI-IX) और स (41, VI-IX) के कोण घसीट लेखन के कारण गोले हो गये हैं।
5. ऋ (7, IX), ङ (15, VIII-IX) और ज (18, VI-IX) के दाई ओर के सिरों पर नये फंदों या छल्लों की शक्ल के चिह्नों का उदय हो गया है। इस ज की तुलना स्त. V के ज से कीजिए।
6. उ की मात्रा का दाईं ओर ऊपर घूमना (उदाहरण के लिए देखिए पु, 30, IX)। पहले यह गु तु, भु और शु तक ही सीमित था। बाद में सु में भी (फल. VIII, 41, II, III) ऐसा मिलने लगता है ।
7. अंत में, अनुस्वार का पंक्ति पर मिलना (देखिए रं, 36, VIII) । यह प्राचीन अवशेष नहीं है अपितु एक नया विकास है जिसका उद्देश्य पंक्तियों को और समान बनाना है। (मिला. ऊपर 26, अ, 5) ।333
30. उत्तरकालीन कलिंग लिपि : फलक VII और VIII
यह लिपि अभी तक केवल कलिंग नगर के गंग राजाओं के ताम्रपट्टों पर मिली है। कलिंग नगर प्राचीन काल में चेट राजा खारबेल और उसके उत्तराधिकारियों की राजधानी थी। (दे. ऊपर 18) आधुनिक काल में यह स्थान
333. इस पैराग्राफ की तुलना ब., ए, सा. इं. पै., 15 तथा आगे से कीजिये।
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