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तेलुगू-कन्नड़ लिपि
१३९ 1. ऋ--(फल. VII, 5, XVI) अति दुर्लभ है। मिला. इ, ऐ. 6, 23 के अंत की प्रतिकृति का प्राचीनतर अक्षर । यह फल. VI, 7, I, II के उत्तरी रूप का ही परिवर्तित रूप मालूम पड़ता है।
2. ख--(फल. VIII, 12, III-V) । अत्यंत घसीट रूप है । पुराने कन्नड़ ख और इसमें कोई फर्क नहीं । फ्लीट के मत से328 सन् 800 से पूर्व कभी नहीं मिला। किन्तु सगोत्री पल्लव अभिलेखों में (फल. VII, 9, XXIII, मिला. आगे 31, आ, 4) 7वीं शती से ही यह रूप मिलता है। _____3. च--ञ्च में (फल. VII, 41, XIX; फल. VIII, 19, III, IV) 9वीं शती से खुलने लगता है । ___4. द-9वीं शती से इसकी दुम ऊपर को उठने लगती है (फल. VIII, 27, II, IV, V )।
5. ब--ऊपर को खुला (फल. VIII, 32, V) यह रूप फ्लीट के मत से329 सबसे पहले लग. 850 ई. में मिलता है ।
6. म-(फल. VII, 31, XVII; VIII, 34, HI-V) इसका ऊपरी भाग दाईं ओर को खिंच जाता है और उसी ऊँचाई पर आ जाता है जिस पर निचला भाग स्थित है। यह पुराने कन्नड़ म का आदि रूप हो जाता है।
7. ल--(फल. VII, 34,XVI) असामान्य घसीट रूप है। अन्यत्र ऐसा ल केवल संयुक्ताक्षरों में ही मिलता है (जैसे श्लो, फल. VII, 44 XVIII में ) ।
8. मात्राएं कभी-कभी व्यंजन के नीचे लगती हैं (जैसे घे, फल. VIII, 28, V में )।
9. विराम चिह्न : अंतिम म् (फल. VIII, 41, XVII; फल. VIII, 46, V) और अंतिम न् (फल. VIII, 45, V) के ऊपर खड़ी पाई होता है।
____10. द्रविड़ ड (फल. VII, 45, XV, XVIII; 46, XXI; फल. VIII, 47, II, III) और ळ (फल. VII, 46, XV, XVIII; फल. VIII, 49, II, V ) सबसे पहले सातवीं शती में मिलते हैं। इनमें ड में संभवतः दो गोले र सम्मिलित हैं और ळ संभवतः फल. VII, 40, XIV, XVI का कोई
328. ए. ई. III, पृ. 162 तथा आगे। 329. ए. ई. III, 163 ।
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