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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८ भारतीय पुरालिपि-शास्त्र ही है; (च) औ की मात्रा (पौ, 27, XII, XIV में) इसका दायां भाग हमेशा और सभी दक्षिणी लिपियों में एक हुक के आकार का होता है जो घसीट में द्वितीय मात्रा और आ की लकीर के जुड़ने से बनता है । मिला. यौ, फल. III, 31, VI)। आ. मध्य विभेद यह दूसरा विभेद लग. सन् 650 से लग. 950 ई. तक मिलता है। इसका (क) पश्चिम में वातापी या बादामी के चालुक्यों, उनके उत्तराधिकारी मान्यखेट के राष्ट्रकूटों (जब वे नागरी का प्रयोग न करें, देखि. ऊपर 23), मैसूर के गंगों और कुछ छोटे राजवंशों में , (ख) पूरब में वेंगी के चालुक्यों और उनके सामंतों के अभिलेखों में इसका प्रयोग हुआ है । इस काल में विभिन्न वर्गों की लेखन शैलियों में स्पष्ट अंतर दीखता है । पश्चिम के चालुक्यों के ताम्रपट्टों में (फल. VII, स्त. XVI) 324 अधिकांशतया दाईं ओर को झुके चिह्न मिलते हैं जो लापरवाही से घसीटकर लिखने की वजह से बनते हैं । इनके प्रस्तर अभिलेखों में (फल. VII, स्त. XV) अक्षर सीधे खड़े, सुगठित और विशेषकर संयुक्ताक्षरों में असामान्य रूप से लंबे होते हैं । इन अक्षरों से मिलते-जुलते अक्षर राष्ट्रकूटों के अभिलेखों के हैं (फल. VIII स्त. II, III) 325 । इसका अपवाद ध्रुव द्वितीय के बड़ोदा ताम्रपट्ट के हस्ताक्षर हैं328 । राजा के इस हस्ताक्षर और वेंगी के चालुक्यों के अभिलेखों में (फल. VIII, स्त. IV, V) अक्षर अधिक चौड़े और छोटे हैं और इस दृष्टि से पुरानी कन्नड़ 27 से मिलते हैं। ऊपर उल्लिखित अ, आ, क और र के गोलाईदार रूपों के अतिरिक्त जो इस काल में स्थिर हो जाते हैं निम्नलिखित अक्षरों पर विचार किया जा सकता ___324. मिला. इं. ऐ. VI, 86, 88; VII, 300; ज. वा. बा रा. ए. सो. XVI, प. 223 तथा आगे की प्रतिकृतियों से। 325. मिला. इं. ऐ. X, पृ. 61 तथा आगे, 104, 166, 170; XI, 126; XX, 70; ए. क. III, 80, 87, 92 की प्रतिकृतियों से। (उनमें से अंतिम के लिए. देखि. ए. ई. VI, 54) 326. देखि. प्रतिकृति इ. ऐ. XIV, 200 पर । 327. देखि. इ. ऐ. XII, 92; XIII, 214, 248; ए. ई. III, 194 की प्रतिकृतियाँ। 138 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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