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भारतीय पुरालिपि - शास्त्र
फल. VI, 13, XI में बिंदी है । 12वीं शती के पूर्वी अभिलेखों में दोनों रूप काफी प्रचलित हैं277 | पश्चिम 278 में ये इससे कम प्रचलित हैं और ओम् तक ही सीमित है । 11वीं शती के पहले के किसी भारतीय अभिलेख में मुझे अनुनासिक का प्रयोग नहीं मिला । संभवतः अनुस्वार को ही जान-बूझकर इस रूप में परिवर्तित कर दिया गया है, क्योंकि वैदिक ग्रंथों में द्रव व्यंजन या ऊष्म वर्णा के पूर्व अनुस्वार अनुनासिक में परिवर्तित हो जाता है ।
7. वः ( फल. V, 38 XVIII ) के विसर्ग में सिरे पर एक कील है यह वृद्धि अन्य आलंकारिक लिपियों में भी मिलती है ( देखि. उदाहरणार्थ फल. VI, 30, XIV ) । फल. VI, 51 X के विसर्ग में ( मिला. फल. VI, 41, XI और गया अभिलेख से भी) घसीटकर लिखने के कारण इसका रूप रोमन अंक 8 की तरह का हो गया है गया अभिलेख ( इ. ए. X, 342 ) तथा उस काल के हस्तलिखित ग्रंथों में 279 इसमें एक छोटी-सी दुम भी लग जाती है । मिला. फल. VI, 60, XIV के तः से ।
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आ. हुकों वाले नेपाली अक्षर : फल. VI
बेंडेल ने नेपाल की हस्तलिखित पुस्तकों 280 की ध्यान से परीक्षा के उपरांत बतलाया है कि हुकों वाले अक्षर सबसे पहले 12वीं शती में मिलते हैं और 15वीं शती के अंत आसपास इनका लोप हो जाता है । ऊपर की चर्चा से सिद्ध होता है कि 12वीं शती के बंगाल के अभिलेखों में 'नेपाली हुक' मिलते हैं । इससे उनकी उत्पत्ति का भी खुलासा हो जाता है । इसमें संदेह नहीं कि शिरोरेखाओं का यह रूप-परिवर्तन बंगाली प्रभाव का परिणाम है । बेंडेल ने भी माना है 281 कि इन पर बंगाली प्रभाव अनेक बातों में दीखता है ।
277. मिला. गया के अभिलेख, क, आ. स. रि. फल. 38, सं. 13.
278. मिला. महोबा अभिलेख क., आ. स. रि.
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III, फल. 37, सं. 12;
XXI, फल. 21.
279. Pal. Soc. Or. Series, फल. 38, 82, 69 की बंगला हस्तलिखित ग्रंथों की प्रतिकृतियों से; राजेन्द्रलाल मित्र, नोटिसेज आफ संस्कृत मनुस्क्रिप्ट्स, III, फल. 5. 6; V और VI; और आदि बंगला अभिलेख, ज. रा. ए. बं., XLIII, 318. फल. 18 की प्रतिकृतियों से ।
280. बेंडेल, कै. सं. बु. म. ने. XXII, 281. वही, XXXV, XXXVII.
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