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पूर्वी नागरी
उत्तरकालीन शारदा में (फल. VI, स्त. IX) ऊ, ए, ऐ, ओ, ज, ञ, भ और (यह फल. VI, स्त. VIII में भी मिलता है) में और असामान्य विकास होते हैं। लंबी शिरोरेखाओं के इस्तेमाल की वजह से अनेक अक्षरों के जैसे, अ, ए, य के सिरे बंद हो जाते हैं।
26. नागरी लिपि के पूर्वी विभेद और शर-शीर्ष लिपि
__ अ. पूर्व बंगला : फल. V और VI 11वीं शती के अंतिम भाग में पूर्वी भारत के नागरी अभिलेखों में परिवर्तन के चिह्न स्पष्ट दीखने लगते हैं। इन्हीं से आधुनिक बंगला लिपि का उदय हुआ। 12वीं शती में इन परिवर्तनों की संख्या इतनी अधिक हो जाती है कि इस लिपि को ही पूर्व बंगला कहा जा सकता है। परिवर्तनों का कुछ अनुमान निम्नलिखित प्रलेखों के अक्षरों को मिलाने से ही हो सकता है जिनका प्रतिनिधित्व हमारे फलकों में भी है :
___1. देवपारा प्रशस्ति72-लग. 1080-90 ई. (फल. V, स्त. XVIII) जिसमें बंगला ए, खा, आ, त, थ, म, र, ल और स मिलते हैं। (2) 1182 ई. का वैद्यदेव का भूदान-पत्र273 (फल. V, स्त. XIX) जिसमें बंगला ऋ, ए, ऐ, ख, ग, ञ, त, थ, ध, र, और व मिलते हैं। (3) 1198-99 ई. का कैंब्रिज का हस्तलिखित ग्रंथ सं. 1699, 1, 2274 अ, आ, ऊ, ऋ, ऋ, लु, ल ए, ऐ, औ, क, ख, ग, त, थ, न,म, य, र, व, और स तथा घ, ञ,ण, और श के संक्रान्ति-कालीन रूप ।
पूर्व बंगला के कुछ ही अक्षरों के रूप स्थानीय हैं। अधिकांश अक्षर पुरानी लिपियों में ठीक उसी रूप में या उससे मिलने-जुलते रूप में मिलते हैं। इसके ऋ, ऋ, लु, और ल अक्षर होरियूजी की हस्तलिखित प्रति से (फल. VI, 7-10, V), ऊ नेपाल के प्राचीनतम हस्तलिखित ग्रंथ के ऊ से (फल. VI, 6, VII, मिला. VI, 6, IX के शारदा के रूप से भी) और औ बावर की हस्तलिखित प्रति के ओ (फल. VI, 14, I, II) से मिलता है । अ, आ, क, न, म, य, व, ष,
272. ए. ई. I, पृ. 305-6. 273. ए. ई. II, 347
274. मिला. बेंडेल, के. सं. बु. मैनु. XXXVI में कुछ भिन्न विचार प्रकट करते हैं; और Pal. Soc., Or., Series, फल. 81. का मुद्रित अंश ।
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