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नागरी लिपि
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आड़ी शिरोरेखा वाले दोनों प्रकारों के अक्षरों का मेल है । इस शैली के नमूने राष्ट्रकूट राजा गोविंद तृतीय के सन् 807-8 के राधापुर और वाणी दिण्डोरी ताम्रपट्ट (फल. V, स्त. 1V) 232, चाहमान विग्रह द्वितीय के सन् 973 ई. के हर्षअभिलेख (फल. V, स्त. IX) 233 में मिलते हैं ।
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ऊपर उल्लिखित दोनों अभिलेख ऐसे सबसे पुराने प्रलेख नहीं हैं जिनमें नागरी अक्षर मिलते हैं । इसके सबसे पुराने वास्तविक नमूने 234 कैरा के ताम्रपट्टों ( सन् 628 और 633 ), डभोई ताम्रपट्ट ( सन् 642 ई.), नौसारी ताम्रपट्ट (सन् 705) और कावी ताम्रपट्टों ( सन् 736 ) 235 के ऊपर गुर्जर राजाओं के हस्ताक्षरों में मिलते हैं । इनके ऊपर की इबारत दक्षिणी लिपि में है । पहले के तीन हस्ताक्षरों में नागरी अक्षर अल्पांश में हैं। अधिकांश अक्षर प्राक्तर उत्तरी या दक्षिणी रूपों के हैं । चौथे हस्ताक्षर में ही सभी चिह्नों के नागरी रूप हैं और ये पूरी तरह विकसित रूप हैं । किन्तु सबसे प्राचीन प्रलेख जिसमें सर्वत्र नागरी रूप हों राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग का सन् 754 ई. का सामनगड़ दानपत्र ही है ( फल. IV, स्त. XXII ) 2 236 । कण्हेरी अभिलेख सं. 15 और 43 के अक्षर ( फल. V, स्त. V ) 237 भी अधिकांशतया इसी प्रकार के हैं । ये अभिलेख शिलाहार राजा पुल्लशक्ति और कपर्दिन द्वितीय के राजकाल में क्रमश: सन् 831 और 877 ई. में खुदवाये गए थे ।
सामनगड़ और कण्हेरी के अभिलेखों और 9वीं शती के कुछ दूसरे लेखों में 238
232. इं. ऐ. VI, 59; XI; 158; मिला. ए. ई. III, 103 और इ. ऐ. XIV, 200 की प्रतिकृतियों से ।
233. मिला. इं. ऐ. XVI, 174 की प्रतिकृति से भी ।
234. इससे पूर्व के उमेता और बेगुम्रा के पट्टों (इं. ऐ. VII, (199) की असलियत पर विवाद है (इं. ऐ. XVIII, पृ. 91 उनके नागरी अक्षर Anec. Oxon, Ar. Series I, 3 फल. 6 पर
236. इं. ऐ. XI, 105.
237. इं. ऐ. XIII, 235; XX, 421.
XVI1 63, तथा आगे ) ;
दिये गये हैं ।
235. देखि. ज. रा. ए. सो. 1865, पृ. 247 तथा आगे; ए. इं. v, 40; इं. ऐ. V, 113; XIII, 78 की प्रतिकृतियों और जि. बे. वी. आ. 8, 2 की टिप्पणियाँ ।
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238. उदाहरणार्थ मिला. अंबरनाथ अभिलेख, ज. बा. बां. रा. ए. सो. IX, 219; XII, 334; इं. ऐ. XIX, 242.
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