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नागरी लिपि उसकी प्रायः समकालिक आदित्यसेन की अफसड़-प्रशस्ति के अक्षर (फल. IV, स्त. XVIII) न्यूनकोणीय लिपि के सातवीं शती में अगले विकास के द्योतक हैं । ध्यान देने की बात यह है कि अंशुवर्मा के अभिलेख और तत्कालीन अन्य नेपाली लेखों में ष का गोला रूप मिलता है । इस प्रकार ये पूर्वी गुप्त अक्षरों से संबद्ध है। उधर अफसड़ प्रशस्ति और उससे संबद्ध भारतीय लेख पुरानी उत्तरी लिपि के पश्चिमी विभेद से संबद्ध हैं ।220 इस दूसरे विभेद को फ्लीट ‘सातवीं शती का मगध का कुटिल विभेद' कहता है221 क्यों कि इसमें लकीरों के निचले भाग में मोड़ अधिक स्पष्ट हैं । मैं इसे 'कुटिल' कहना पसंद नहीं करता। सबसे पहले प्रिंसेप ने यह नाम सुझाया था। 222 तब से बहुत-से लेखक इसे यही नाम देते आ रहे हैं। इसका आधार देवल प्रशस्ति में आया 'कुटिल अक्षर' का उल्लेख है । 23 पर लोगों ने इस पद का गलत अर्थ किया है । मैं इसे पुरालिपिक पारिभाषिक शब्दावली से निकाल देना चाहता हूँ। इसी प्रकार कीलहान भी इस काल के अनेक अभिलेखों के लिपिशास्त्रीय अध्ययन के समय इस प्रयोग से बचना चाहता है । 224 ___ 8वीं-10वीं शती में न्यूनकोणीय या सिद्ध मातका लिपि धीरे-धीरे विकसित होती-होती अपनी उत्तराधिकारिणी नागरी लिपि की ओर चली जाती है। नागरी के पुराने भारतीय रूप और इसमें फर्क सिर्फ यही है कि नागरी में खड़ी लकीरों
220. मिला. इं. ऐं. IX, पृ. 163 तथा आगे, सं. 4-10, 12; बेंडेल, जर्नी इन नेपाल, 72, सं. 1. 2; की प्रतिकृतियों से और हानली की टिप्पणी, ज. ए. सो. बं. LX, 85 भी देखिए।
221. फ्ली. गु. इं. (का. इं. इं. III), 201, 284; ए. ई. III, 328, टिप्पणी 1.
222. ए.सो. बं., VI, 778, फल. 41.
223. ए. ई. I, 76, मैंने कुटिलान्यक्षराणि विदुषा का अर्थ किया है 'कुटिल अक्षरों के ज्ञाता द्वारा'। कुटिल अक्षरों से तात्पर्य है उन अक्षरों से जो कठिनाई से पढ़े जा सकें। अपने इस खुलासे की पुष्टि में मैं विक्रमांक चरित, XVIII, 42 का उद्धरण देना चाहूँगा जहाँ कहा गया है कि रानी सूर्यमती ने अपने को कायस्थः कुटिल लिपिभिः अर्थात् 'कुटिल अक्षरों के लेखकों से ठगे जाने से बचाया।
224. मिला. इस श्रेणी के अभिलेखों पर इं. ऐ. XVII, 308, XIX, 55; XX, 123; XXI, 169; ए. ई. I, 179; II, 117, 160 में उसकी टिप्पणियाँ ।
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