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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैश्य-समाज। खर्चमें देना पड़ता है। उसके बदलेमें कुछ नहीं मिलता । जितना माल विदेशोंसे हिन्दुस्तानमें आता है उसमेंसे रुईके सूत और कपडोंकी कीमतका सालाना औसत ४६३९४७०००) अर्थात् एक चौथाईसे कुछ ज्यादा है। इस लिए इस पर ध्यान देना जरूरी है। यहाँसे हर साल ४११०००) टन रुई जाती है और २४२०००) टन कपड़ा और सूत आता है । यद्यपि तोलमें सिर्फ आधेसे कुछ ज्यादा माल तैयार होकर आता है, लेकिन उसका दाम ड्योढ़ेसे ज्यादा होता है। अर्थात् २९२३११०००) रुईका दाम पाकर कपड़े और सूतके लिए ४९३९४३००) देना होता है । ___ मुख्य आवश्यकता हिन्दुस्थानके व्यापारकी यह दशा क्यों हुई, उसकी दुःखदायक कथा कहना अब मैं जरूरी नहीं समझता। क्योंकि वाइसराय और स्टेट सेक्रेटरीने अब इस बातको स्वीकार कर लिया है कि यहाँके उद्योग और व्यापारकी उन्नति करना बहुत जरूरी है और उसकी मदद करना गवर्नमेंटका कर्तव्य है । मेरी समझमें यह लाजिमी है कि इसमें अब न तो देर होनी चाहिए और न कमी । यों तो बहुत सी ऐसी बातें हैं जो देशकी आर्थिक उन्नतिके लिए जरूरी हैं, लेकिन दो बातें परम आवश्यक हैं, एक तो हर तरहके कल-पुरजे (मशीन) बनानेके, दूसरे जहाज बनानेके कारखाने। ईश्वरकी कृपासे लोहा, लकड़ी कोयला इत्यादि जो इन कारखानोंके चलानेके लिये जरूरी चीजें हैं वे यहा निकलती और मिलती हैं। _ जो कुछ हो, हमारे वैश्य-समाजको इस बातका बिलकुल ही पता नहीं है कि आजकलके इस व्यापारमें हमारे देश-भाइयोंका कितना नुकसान हो रहा है । असल में “ जिसके कभी न For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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