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दरिद्रता। जन । रूसमें इस दलवालोंने काम करना भी आरंभ कर दिया है। जर्मनीकी भी वही दशा है । वहाके कितने ही सेठ-साहूकार अपने माल-जायदाद, कल-कारखाने जमीन-जोतसे बेदखल कर दिये गये हैं। यहाँ तक कि उन्होंने राजवंश तकका नाश कर डाला है ।
हवाका रुख देख कर क्या हम इस बातका पता नहीं लगा सकते हैं कि स्वतंत्रताकी यह लहर उठ कर वहीं तक न रहेगी, बल्कि आगे भी बढ़ सकती ह, और अवश्य बढ़ेगी। अब आप दरिद्र भारतका ध्यान कीजिए कि वह कहाँ तक इन बातोंकी समता करनेमें समर्थ है। हम क्या लिखें ? जहाँ संसार सोशलिष्टोंका स्वागत करनेको तैय्यार है, जहाँ इंग्लैण्डके प्रधान मंत्री मि० लॉयड जार्ज तक कुछ दिन पूर्व ही “ Universal old age Pension " 3477" Legal Maximum wage ” geara पेश कर जीविका (living ) के सवालको हल करना चाहते थे।( जिस पर लोगोंने असंतुष्ट हो कर कहा था कि "Universal Pension for life '' कराये बिना काम न चलेगा-यह दरि. द्रता समूल नष्ट न हो सकेगी) शोक है कि वे सब बातें आज भी भारतके लिये स्वप्नवत् हो रही हैं। भारतकी दरिद्रता दूर करनेके लिये एक मात्र उपाय " स्वराज्य " है।। __ आज हम न तो अधिक प्रजातन्त्र ही चाहते हैं; न एक बार ही मालामाल हो जाने की इच्छा रखते हैं। प्रार्थना केवल इतनी ही है कि हमारी इतनी चढ़ी-बढ़ी दरिद्रता दूर कीजिए, ताकि हम दुर्भिक्षोंका सामना करनेसे सदाके लिये बच जावें । क्योंकिः
"Money is the counter that enables life to be distributed socially, it is life as truly as sovereigns and Bank notes are money."
---Bernard Shaw.
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