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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यापार । २३ औद्योगिक सुधार में सच्चे बाधक हमारे देशके लखपती करोड़पती भी हैं। उनकी कंजूसी भी भारतको बर्बाद करने में बड़ी सहायता दे रही है, क्योंकि वे अपने धनको अपनी छातीके नीचे लेकर बैठे रहना ही पसन्द करते हैं। उसे व्यापारमें लगा कर अपनी एवं देशकी पूजी वे नहीं बढ़ाते । सच पूछिए तो ईश्वरने बन्दरके हाथमें शीशा दे दिया है । उन्हें धनका सदुपयोग करना ही नहीं आता। नाच, रंग, विवाह आदि कार्यों में वित्तसे अधिक धन लुटानेको वे तैय्यार हैं, किंतु व्यापार तथा कला कौशल में अपनी कौड़ी लगाना वे ब्रह्महत्या एवं गोहत्यासे भी गुरुतर पाप समझते हैं। इसके विरुद्ध यूरोपके धनपति अपने घरका सामान बेच कर भी अपने रुपयोंका सदुपयोग करते हैं और हमारे देशको दरिद्री बनाते हैं । वहाँसे प्रतिवर्ष अरबों रुपयोंका सस्ता और उम्दा माल भारतमें आकर खपता है, वह रुपया यूरोपमें पहुँच जाता है और भारत अपनी पूँजी दूसरोंको देकर कंगाल होता जाता है । इस दोषका एक बड़ा भारी भाग हमारे कंजूस धनपतियोंको दिया जा सकता है। हमारे ऐसे व्याजखोर धनवानोंका जीवन नीरस और निरुद्देश्य होता है। वे अपने चोलेमें खुश हैं, उनको दूसरोंके दुःखसे क्या प्रयोजन। परन्तु उन्हें यह तो निश्चय मान लेना चाहिए कि उनकी भावी सन्तान, उनके इस अविचार एवं अदूरदर्शिताके कारण बिना अन्नके जठर-ज्वालासे भस्म हो जायगी। जिस धनको अपनी छातीके नीचे रख कर आज वे फूले नहीं समाते, वह क्या उनका है ? कदापि नहीं । देखिए: लक्ष्मी स्थिरा न भवतीति किमत्र चित्रम्, एतान्नपश्यति घटाञ्जल यन्त्रचक्रे । रिक्ता भवन्ति भरिता भरिताश्च रिक्ता।" For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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