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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ AAAAAAAAAAA.RAJ .... भारतमें दुर्भिक्ष। ढंगोंसे खेती करनेमें लगी है, जिनसे कठिनसासे जीवन-निर्वाहके योग्य फसल पैदा होती है । जो कुछ कृषिमें अन्तर हुआ है वह भायात और निर्यात व्यापारका प्रभाव है, न कि औद्योगिक परिवर्तनका । (२)कुछ स्थानों-जैसे बम्बई बंगाल के कोयलेकी खानों, बिहारके नीलके जिलों आदि में पश्चिमोय ढंगोंका प्रचार हुआ है । परन्तु वहाँ भारतीय मजदूरोंकी कमी, उनकी अक्षमता सर्वत्र देखी जाती है और निगरानी करनेके लिये योग्य भारतवासी नहीं मिलते। (३) उद्योगोंकी कच्ची सामग्री पर कमीशनने विचार किया है। उद्भिज सामग्रीमें अमेरिकन कपासकी कृषि बढ़नी चाहिए । गन्ना जितनी भूमिमें यहाँ बोया जाता है अन्यत्र नहीं बोया जाता; परन्तु वह अच्छी नस्ल का नहीं होता । बोनेका ढंग सुधारना चाहिए। छोटे छोटे खत्तोंमें बोये जानेके कारण एक भी फेक्टरीका चलना कठिनाईसे होता है। तिल बहुत होता है। परन्तु कोल्हुओं में उन्नति होना आवश्यक है । अभी तो अधिकतर कच्चा माल विदशोंको भेज दिया जाता है । चमड़ेका धंधा देहातके चमार बहुत बुरी तरहसे करते हैं। उनके लिये यह कहा जाता है कि वे अच्छी खालको बुरा चमड़ा बना देते हैं । चमड़ा बनानेकी फेक्टरिया खोलना चाहिए । कमानके कामके पदार्थ भारतवर्ष में अच्छे और बहुत भौतिके होते हैं । अभी बबूल, अवारमकी छाल काममें आती है ! परन्तु म्यूनीशन बोर्ड अन्य पदार्थों का गुणान्वेषण कर रहा है। यहॉकी खाल क्रोम चमड़ेके बहुत योग्य होती है । यहाँ जितनी खाल पैदा होती है उतनी खर्च नहीं होती है । युद्धके पूर्व अधिकांश अवशिष्ट जर्मन-व्यापारियोंके हाथ में था। For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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