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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यापार । normerammarrrrr हजार टनके और ७ तेरह तेरह हजार टनके हैं; और ये अमेरिकाले साथ व्यापार करने के लिये बने हैं। परन्तु भारतने क्या किया ? भारतको स्मरण रखना चाहिए कि अन्य देश व्यापारमें चढ़-बढ़ रहे हैं और उस पर भयङ्कर आक्रमण होनेवाला है । यदि भारतने हथौड़ा नहीं तैयार किया तो उसे अन्य हथौड़ोंके लिये एरण बनना पड़ेगा । इस युद्धने व्यापारके उस विशाल क्षेत्रको जिसे देख ही नहीं सकते थे, प्रत्यक्ष कर दिखाया है। भारतको औद्योगिक उन्नति करनेका अच्छा अवसर मिला है, इसे व्यर्थ नहीं खोना चाहिए । ऐसा सुसमय बार बार नहीं आता है । हमें संसारके साथ होना चाहिए और उसीकी भाँति आगे कदम बढ़ाना चाहिर । साधारण कला, कौशल एवं कृषिकार्य में भी सुधार होने की आवश्यकता है। यों तो भारतीय सरकार भारतवर्षकी औद्योगिक उन्नतिकी चेष्टा पिछले ३० वर्षों से कर रही है; परन्तु एक तो इतना बड़ा विशाल देश, जहाँ सब प्रकारकी औद्योगिक उन्नतिकी सामग्री तथा सम्भावना है, दूसरे आर्थिक अवस्था इतनी हीन कि अपनी उन्नति के लिये निःशक्त और पराधीन, अत एव वे चेष्टायें सर्वथा अपर्याप्त थी; क्योंकि वे केवल कुछ दूरदर्शी ऑफिसरोंका प्रयत्न स्वरूप थीं। सरकारकी अभिमत किसी व्यापक नीतिका फल नहीं थीं । सरकारके यहीं तो Laissez faire सिद्धांतका राज्य था अर्थात् सरकारको इन बातोंसे कोई सरोकार नहीं, सबको अपने अपने व्यवसायकी उन्नति अवनति करनेकी पूर्ण स्वतंत्रता है। इसी सिद्धान्तके विपरीत जर्मनी, जापान आदिमें सरकार उद्योग-धन्धोंकी उन्नतिका भरपूर प्रयत्न करती है। परिणामतः भारतवर्षकी आर्थिक पराधीनता और निर्बलता बड़ी भयंकर हो रही थी। भारतवासियोंके इस पर विल. पनेका फल समझिए, अथवा युद्धकी चेतावनोका । मई सन् १९१६ भा. २ For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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