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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir n h - AA... दुर्मिक्ष । ૨૩ और देशमें शान्ति स्थापित करना सरकारके लिए सबसे अधिक आवश्यक हो गया है। इस लिये अनाजका किराया एक स्थानसे दूसरे स्थान पर भेजने में की मन आने डेढ़ आनेसे अधिक न लिया जाय। इन चारों उपायोंको पूरी तरहसे अमलमें लाने पर देशसे अकालका भय बहुत कुछ मिट कर पूरी शान्ति स्थापित हो सकती है। इनके बिना न तो शान्ति होगी और न तकलीफोंसे लोगोंका छुटकारा होगा। यह माना कि देश की म्युनिसिपैलिटियाँ यदि सस्ते अनाजकी दूकानें खोलेंगी तो कुछ सहारा मिलेगा, पर देशके बड़े भारी हिस्से में म्युनिसिपैलिटिया ही नहीं हैं। फिर जो थोडीसी हैं। उनमें बहुतोंकी हालत अच्छी नहीं है--जिनकी हालत अच्छी है और जो सस्ती दूकानें खोलेंगी भी उनसे मुलाहजगीरों और म्युनिसिपिल मेम्बरोंके दोस्तोंके सबबसे जितना फायदा पहुँचना चाहिए उसका दसा हिस्सा भी न पहुँचेगा। मतलब म्युनिसिपैलिटिया देशका अकाल नहीं मिटा सकतीं। देशकी हालत ऊपरवाली बातोंसे ही कुछ सुधर सकती है। यदि सरकारको प्रजाका कुछ खयाल है और वह सचमुच प्रजाकी तकलीफें दूर करना चाहती है तो इस ओर पूरा ध्यान दे। “ उत्साह " उरई ता० २७ सितम्बर १९१९ में लिखता है। चारेकी इतनी कमी पड़ गई है कि यदि शीघ्र प्रबन्ध न किया गया तो५० फीस दी पशुओंके मर जानेकी सम्भावना है। मनुष्योंकी कमी, दैवका कोप, और कर्मचारियोंकी असावधानी ही इस दुर्गतिके कारण हैं । पेटकी रक्षा सबसे प्रधान रक्षा है। भारत ऐसे कृषि-प्रधान देशमें यह कोई शोभाकी बात नहीं कि यहाँवाले तो. For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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