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दुर्भिक्ष।
२३३ दूसरा दान सड़सठ करोड़का है। पहले दानका रुपया हमारे देशके कर्जकी शकलमें वसूल किया गया और दूसरे दानका रुपया लड़ाईका टैक्स लगा कर वसूल किया जायगा। यदि इतनेसे ही देशका पीछा छूट जाता तब तो कुछ कहने की जरूरत ही न थी, पर लड़ाईका खर्च भी इसी देशको उठाना पड़ेगा और इस खर्चको पूरा करने के लिये यहाँ हर तरहके टैक्स बढ़ाये और नये नये लगाये जायेंगे। पर हिंदुस्तानको जो हालत है उससे हमें उम्मीद नहीं कि यह तमाम खर्च इस देशसे निकल सकेगा-ऐसी हालतमें भविष्यमें हिन्दुस्तानकी सरकार इंग्लैंड, अमेरिका या जापानसे लड़ाईके लिये कर्ज लेगी। यह कर्जकी रकम अरबों रुपये की होगी और उसका बड़ा भारी सूद इस देशसे टैक्सोंके जरियेस अदा किया जायगा । जब भविष्यकी यह हालत दोख रही है तब हम अपनी सरकारके सवा दो अरब रुपये दानकी प्रशंसा कैसे कर सकते हैं ! इस नाजुक हालतको मिटाने के लिए सबसे पहला यह उपाय है कि हमारी सरकार अपने देशवालोंको भूखा मार कर दान-पुण्य न करे । क्योंकि इतनेसे रुपयेसे इंग्लैंडका उतना उपकार नहीं होगा जितना हमारा नाश हो जायगा। यदि सरकारने इतना दान न किया होता तो अगले दो साल तकके लिए लड़ाईके खर्चके लिए रुपया काफी होता और नया टैक्स लगा कर देशको निचोनेकी जरूरत न होती। देशमें शान्ति स्थापित करनेका दूसरा उपाय यह है कि सरकार इस देशसे एक पैसे का भी अनाज बाहर भेजनेके लिए न खरीदे और न किसीको बाहर भेजने दे । हम यह मानते
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