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दुर्भिक्ष।
२१७ जाती है, जो कि उनके और मृत्यु के बीचमें खड़ी रहती है, तो भयंकर काल उनके गले पर सवार हो जाता है।"
सर विलियम हण्टर, मिस्टर ए० ओ० हिर्डम, सर आइलैण्ड काल्विन, सर चार्ल्स ईलियट, लार्ड क्रोमर, सर हेनरी काटन, मिस्टर कैरहार्डी, मिस्टर सण्डरलैण्ड और सर जेम्स कार्ड शादि सभी विदेशी सज्जनोंने एक स्वरसे भारतके दुर्भिक्षका प्रधान कारण भारतवर्षकी घोर दरिद्रताको बताया है। मि० माल्थस साहबने लिखा है:
“Insufficient supply of food to any people does not show itself merely in the shape of famine. It assumes other forms of distress ar well such as generating evil customs, spreading immorality and vice etc.-'
अर्थात्--जब किसी देशके मनुष्योंको भरपेट अन्न नहीं मिलता तब उस देशमें केवल दुर्भिक्ष ही पड़ कर नहीं रह जाते, बल्कि ऐसे देशोंमें तरह तरहकी तकलीफें होती हैं। बुरे बरे रस्म-रिवाज़ फैलते हैं, और व्यभिचार तथा अनाचारकी वृद्धि होती है।
पुण्यभूमि, ऋषिभूमि भारतवर्ष में किस प्रकार धीरे धीरे दुर्भिक्ष निशाचरने अपना पैर जमाया, यह निम्न लिखित नकशा देखनेसे स्पष्ट होगा।
११ शताब्दीमें, २ दुर्भिक्ष पड़े।
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