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भारतमें दुर्भिक्ष । wwwmmmmmmmmmmmirmire ने महाप्रलय मचा रखा है। करोड़ों गरीबोंकी ठंडी आहे भारतके पूर्व वैभव और कीर्तिको भस्म कर रही हैं-आज भूखोंके रोदनसे भारतका कोना कोना गूंज रहा है
उड़ते प्रभञ्जनसे यथा तप-मध्य सूखे पत्र हैं। लाखों यह। भूखे भिखारी घूमते सर्वत्र हैं ! है एक चिथड़ा ही कमरमें और खप्पर हाथमें । नंगे तथा रोते हुए बालक विकल हैं साथमें । वह पेट उनका पीठसे मिल कर हुआ क्या एक है ! मानो निकलनेको परस्पर हड्डियोंमें टेक है! निकले हुए हैं द॑ात बाहर नेत्र भीतर हैं फँसे । कि न शुष्क आतोंमें न जाने प्राण उनके हैं फैंसे ? अविराम आँखोंसे बरसता आसुओंका मेह है। है लटपटाती चाल उनकी छटपटाती देह है। गिर कर कभी उठते यहाँ, उठ कर कभी गिरते वहीं, घायल हुएसे घूमते हैं वे अनाथ जहाँ तहा !
-भारतभारती। दुर्भिक्ष भारतवासियोंका उसी भाँति संहार कर रहा है जैसे श्रीरामचंद्रजीकी वानरी सेनाका कुंभकर्णने संहार किया था। यह दरिइता ही दुर्भिक्ष, हैजे, प्लेग, ज्वर आदिका भयङ्कर रूप धारण कर भारतका संहार कर रही है।
भास्ट्रेलियाके प्रत्येक मनुष्यकी मायका औसत ६००) रु. है और व्यय २८६॥) रु० है, ऐसी दशा में वह ३१३॥) प्रति वर्ष बचा लेता है । अर्थात् वहाँके लोग आनन्दसे खा-पी कर लगभग १) रु
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