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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ भारतमें दुर्भिक्ष । किसी गावसे एक बेगार पकड़ लेता है और उसे उसकी कठिन मिहनतके लिये एक पाई नहीं देता, बल्कि यदि वह चलने में किर्स कार्यवश 'ना' कह दे तो उस दीनको बेतों और ठोकरोंसे मारत है। पटवारीको देखिए, वह किसी एक गरीबको अपनी सेवामें रात दिन हाजिर रखता है और उस दीनको एक फूटी कौड़ी भी नह मिलती। खेद है कि भारतके भाग्य-विधाता भी इनकी दशा पर ध्यान नहीं देते। भारतमें ढूँढने पर '५)रु० मासिक. पर भी एक हट्टा-कट्ट जवान मजदूर मिल जाता है । इसका कारण देशकी दरिद्रता और दुर्भिक्षकी प्रबलता है। ___“ न्यू इंग्लैण्ड मेगजीन " ( New England Magazine ने अपने सन् १९०० सितम्बरके अंकमें लिखा थाः: The real cause of Indian famines is the extr: eme the object, the awful, Poverty, of the Indian people. अर्थात् भारतमें दुर्भिक्षका मुख्य कारण भारतीयोंकी अत्यन्त नीचे दर्जेकी दरिद्रता है।" __+ + + इधर हमारे खेल भी विदेशी हो गये, अतः देशका करोड़ों रुपया इन खेलों द्वारा भारतसे कूद कर विदेशों पहुँचने लगा। हम लोग विदेशी खेलोंसे इतना प्रेम करने लगे हैं, मानों भारतमें एक भी उत्तम खेल नहीं है। किंतु हम दावेके साथ कह सकते हैं कि भारतका एक साधारणसे साधारण खेल भी अत्यन्त बलदायक, स्वास्थ्य-सुधारक एवं सरल और सस्ता है । फुटबाल, क्रीकेट, टेनिस, हाकी, गॅॉल्फ जैसे हानिकारक और निकम्मे महँगे खेलोंसे हमारे भारतीय खेल कई बातोंमें For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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