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भारतमें दुर्भिक्ष ।
भिक्षुकोंकी वृद्धि रोकनेका कोई उपाय अभी तक नहीं सोचा गया! न जान भारतवासी क्यों इस ओरसे बेफिक्र हो रहे हैं । इस भौति भिक्षुकोंको बढ़ने देना भारी भूल है । जिस देशमें भिक्षुक अधिक हों क्या वह देश कभी उन्नत हो सकता है ? नहीं, कदापि नहीं। देशकी उन्नतिमें यह भिक्षुक दल अत्यंत बाधक है । हम यह नहीं चाहते कि हमारे पूर्वजोंकी आज्ञा उल्लंघन कर दान देना, लेना तथा आयुके चौथे भाग अर्थात् वृद्धावस्थामें हरिभजन या देशकल्याणके निमित्त गृहत्याग करना बुरा है । नहीं वह उत्तम है, किंतु शास्त्र-मर्यादानुकूल होना चाहिए-वर्तमान भिक्षुक समाज इसके नितान्त अयोग्य है । ऐसे मुफ्तखोरोंको देशमें रखनेसे एक दिन वह आजायेगा जब कि सभी भिक्षुक ही भिक्षुक दृष्टि आवेंगे। भारतमें दानका धर्मसे सम्बन्ध होने के कारण कोई कानून भी गवर्नमेंट नहीं बना सकती । और बना भी सकती है तो गवर्नमेंटको इससे लाभ ही क्या ? यदि गवर्नमेंट भिक्षुकोंके लिये कानून बना दे. कि-" अमुक आयुसे नीचेवाला व्यक्ति भिक्षुक नहीं हो सकता.. अथवा स्वस्थ और हट्टा-कट्टा बलवान, एवं स्त्री-पुत्रवाला मनुष्य भीख नहीं मांग सकता; अन्धे, लँगड़े, लूले, कोढी, बूढ़े, अपाहिज, अथवा जो काम करने के लिये अयोग्य हों वे ही भिक्षावृत्ति द्वारा उदरपोषण कर सकते हैं," तो कोई बुरी बात नहीं होगी और न भारत वर्षके धर्मको किसी भँतिका धक्का ही लगेगा। हमारे नेताओंका ध्यान इस ओर शीघ्र जाना चाहिए । गवर्नमेंट ऐसे ऐसे कानून ता पास करनेको उतारू रहती है जिससे भारतवासियोंके हृदयको वज्रके समान चोट लगे, किंतु भारतक सुधारकी दृष्टिसे बहुत ही कम
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