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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - सन् देशमें अन्नकी कमी । विदेशोंको भेजा गया २३.८ १९१५-१६ १९१६-१७ १९१७-१८ अर्थात् यहाँकी कमीका कुछ भी ध्यान न रख कर औरोंके पेट भरनेका ध्यान है ! इतना होने पर भी ता. ३१ मार्च सन् १९२१ ई. तक चार लाख टन गेहूँ भारतसे विदेशको भेजनेकी आज्ञा सरकारने निकाली है। कितने दुःखकी बात है कि सरकारको, भारतवर्षकी रक्षाकी कोई आवश्यकता नहीं ज्ञात होती ! इस वर्ष वर्षा न होनेसे देशमें अन्नकी बड़ी भारी मांग है; भयानक दुर्भिक्षके चिन्ह दृष्टि आ रहे हैं। इतने पर भी भूखे भारतके मुखका प्रास छीन कर अपने सगे भाई-बन्धुओंको हमारी मा-बाप सरकार (!) इतना ह्स ठूस कर खिलाना चाहती है कि उन्हें पदहज्मी मिटाने के लिये पाचककी गोली खाने तकको भी जगह न रह जावे ! इस प्रकारकी सरकारकी न्यायबुद्धिको देख कर कब तक धैर्य रखा जा सकता है। "भूखे भजन न होत गोपाला" वाली कहावत आज चरितार्थ हो रही है । भूखों रह कर किसी प्रकारकी भी भक्ति नहीं हो सकती। चाहे वह ईश्वरभक्ति हो, राज्यभक्ति हो या देशभक्ति । वर्तमान स्वराज्य आन्दोलनके अपराधी हम भारतवासी नहीं है। हमें आवश्यकताने ऐसा करने के लिये विवश किया है। स्वतंत्रता मनुष्यका जन्मसिद्ध अधिकार है । कोई मनुष्य भले ही कुछ समयके लिये किसीका गुलाम बना रहे; परंतु यह बिलकुल संभव नहीं कि वह सदा-सर्वदा उसकी गुलामी ही. करता रहे । और उसके अन्यायों तथा अत्याचारोंको ईश्वर कार्य समझकर सहता रहे और यूँ तक भी नहीं करे ! भारतमें, दुर्भिक्षके कारण हुई इन अधोगतियोंको समूल नष्ट करने के लिये एक मात्र उपाय स्वाधीनता है, और उसके प्राप्तिका मार्ग वर्तमान, राजनीतिक स्वराज्य आन्दोलन है । . यहा एक वेदमंत्र याद आता है,उसमें प्रजाकी तरफसे राजाको प्रार्थना है: For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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