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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨ भारत में भिक्ष । कुल मीजान १०१/ ) हुआ । अभी दो खर्च और बाकी हैं। जिनके बिना फेशन किसी कामका ही नहीं । वह II) मासिक नाई और १२ आने मासिक धोबी वर्ष भरके १५) रु० और मिला दीजिए । अर्थात् एक वर्ष तक हमें अँगरेजी फेशन बनाये रखनेको ११६ | ) खर्च पड़ते हैं । अब घरमें पतलून पहनके बैठना कठिन है, अतः कुरसी और की सृष्टि घर में होने लगी । और भी कई फेशन- सम्बन्धी खर्च हैं, जैसे चाय, उसके लिये रकाबी और प्याले, सिगरेट आदि । इसका अनुमान आप ही लगा लीजिए कि कितना अपव्यय होता होगा । यदि भारतीय पहनावे में २२) रु० खर्च होता है तो विदे शीमें उससे ५ गुणा अधिक होता है, यह सब पैसा विदेशों को चला जा रहा है । इसके अतिरिक्त कई महाशय ओवरकोट पहिनते हैं । इन कोटों की बाँहों पर तथा पीछे कमर पर सामने दुहरे बटन व्यर्थ ही लगा दिये जाते हैं । कई लोग वेस्ट कोटोंके कालरों पर तीन तीन बटन व्यर्थ ही लगवाते हैं । कपड़ों की सिलाई में कभी कभी कपड़ों के मूल्य से अधिक सिलाई देनी होती है । यदि हम विचारें तो इससे हमें, हमारे कुटुम्बको, समाजको या हमारे देशको कुछ भी लाभ नहीं, बल्कि भारी हानि हो रही है । यह फेशन भारतको दरिद्र एवं दुर्भिक्षका क्रीडास्थल बना रहा है । हम पीछे लिख आये हैं कि भारतवासी पूर्व कालमें इतने सभ्य और चतुर थे कि जिनकी समानता में अभी तक एक भी मनुष्य आगे नहीं आ सकता । यह भारतवासियोंकी मिथ्या प्रशंसा नही है, बल्कि विदेशी लोगोंने भी इस बातको For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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