SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir wwwwwwwww भारतमें दुर्भिक्ष। जो फिर जुड़ नहीं सकते । मिट्टीका तेल भी तिगुनी कीमत पा गया। इतना होने पर भी हमने विदेशी वस्तुओंको नहीं छोड़ा, बल्कि उनसे नित्य और अधिक प्रेम करते गये। मिट्टीके दीपकमें मीठा तेल जलाना आज कलके फैशनके विरुद्ध है, पाप है । मैं उदाहरण रूपमें एक वस्तुके विषयमें लिख चुका। अब प्रत्येक वस्तुके विषयमें लिखना व्यर्थ पृष्ठ रंगना है । आप अपने आगे पड़ी किसी वस्तुको देखेंगे तो, वह अवश्य विदेशी होगी। घरमें स्त्रियोंका सौभाग्य चिन्ह चूड़ियाँ भी विदेशी, बिल्लौरी काचकी हैं । वे लग भग २) रु. खर्च करने पर हाथकी शोभा बढ़ावेंगी, किंतु गृहकार्य करते समय जरा ही किसी वस्तुसे टकराई कि टुकड़े हुए। टूटनेके बाद वे जोड़ी नहीं जा सकती, सिवाय फेंकनेके अन्य किसी उपयोगमें नहीं आ सकतीं। अब जरा भारतीय लाखकी चूड़ियों पर दृष्टि डालनेकी कृपा कीजिए । उनका मूल्य ॥) या ॥=) होता है। टूट जाने पर वे फिर जोड़ी जा सकती हैं और बिलकुल खराब हो जाने पर भी चूड़ी बनानेवाले खरीद ले जाते हैं। सारांश यह कि हम अपनी देशी वस्तुओंका अपमान अपनी मूर्खतासे करते हैं और अपना द्रव्य अपने हाथों विदेशी व्यापारियोंके घरमें भर रहे हैं । लिखते दुःख होता है कि ब्राह्मणोंका वह पवित्र जनेऊ तक भी विदेशी सूतका बाजारोंमें मिलता है, कभी कभी तो सीनेके धागोंका बना जनेऊ भी बाजारोंमें बिकता देखा गया है। हमारे भारतीय बन्धु कपड़े भी विदेशी ही पहिनते हैं, जिससे भारत दरिद्र होता जा रहा है और विदेशी वस्त्र-विक्रेता अपना हाथ रंग रहे हैं। कम-टिकाऊ चटक मटकदार विदेशी वस्त्र हम अधिक मूल्य For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy