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भारतमें दुर्भिक्ष । १५०० पशु हैं । इस गाँवके पास ही एडवर्ड कवेन्टर साहबकी मक्खन निकालनेकी कई मशीनें लगी हुई हैं । हमें मालूम हुआ है कि केवल ४-५ को छोड़ कर प्रायः सब घोसी डेरीमें दूध देते हैं । सो मक्खन निकाल कर जो Skimmed milk अर्थात् मशीनका दूध होता है वह हतभाग्य हिन्दुस्थानियोंको ऊँचे दामों पर मिलता है और मक्खन-मलाई गोरे चमड़ेवालोंके काम आता है । लोग शिकायत करते हैं कि भई दहीमें चिकनाई नहीं होती और दूध पर मलाई नहीं जमती। जमे कैसे तुम्हारे भाग्यमें नीला पानी जो बदा है ! __कमेटीकी ५-६ दूकानें बेशक ) सेर दूध बेचती हैं, पर इन पर केवल १०-१२ मन दूध आता है, जो इतने बड़े शहरके लिए काफी नहीं है । कमेटीकी दूकानें मालूम होता है एक प्रकारको चाल है, जिससे वह अपने अन्याय-युक्त टैक्सोंको छिपाना चाहती ह। यदि कमेटी वास्तवमें प्रजाका हित चाहती तो हर गली कूचेमें अपनी दूकानें खोल कर काफी दूध ) सेरमें शहरवालोंको देनेका प्रबन्ध करती। ___ भैंस पर तो २) मासिक टैक्स था ही, अब अफवाह गर्म है कि गौ पर भी २॥) मासिक टैक्स लगनेवाला है। इसका यही अर्थ हो सकता है कि सब पशु शहरके बाहर ले जाओ और वहासे मशी-- नका निकला दूध ऊँचे दामों पर लेकर पिया करो। निकम्मे दुधको पीकर प्रजामें कहाँसे बल आवेगा? क्या ऐसी मरियल प्रजाकी सहायतासे हमारी सरकार शत्रुको जीतना चाहती है ? बुरी अफवाहें कम झूठी निकलती हैं, इस लिए दिल्लीवालोंको
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