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पशु-धन ।
और पंजीके ऊभायक उपायोंकी वृद्धि करें। यदि कोई जाति इन दोनों बातोंकी सहयोगिता . पर ध्यान न देगी तो उसका नाश निश्चय है। __ भारतवर्ष में धरतीका आधार गो-जाति है; और सुखी-सन्तुष्ट, बहादुर प्रजा-जनोंका भी एक मात्र आवार दूध, घीकी उत्पादक गो-जाति ही है । गौकी रक्षाको हम धार्मिक दृष्टिसे नहीं देख रहे हैं, पर यह वास्तवमें भारतवर्षके जीवन-मरणका प्रश्न है। _ मसल मशहूर है कि " मरतेको मारे शाहमदार । " दिल्लीमें दूध दिनों दिन महँगा क्यों होता जाता है, जरा पाठक ध्यान दें। कोई ३-४ वर्ष पहले प्रायः सब घोसी शहरके आसपास रहा करते थे । उनके पशुओं पर साधारण ॥) सेमाही टैक्स था और दूधको हलवाई की दूकान पर पहुँचानेकी मजदूरी नाम मात्रकी थी और कोई चुंगी शहरमें दूध लाने पर न ली जाती थी। अब कोई २-३ वर्षसे कमेटीकी कृपासे फसीलके भासपास रहनेवाले घोसियोंको शहरसे निकाल कर यमुना पार झीलकुरजा नामक गावमें बसाया गया है । जो घोसी बाहर जानेमें असमर्थ थे उनके पशुओं पर फी भैंस ५) मासिक टैक्स लगाया गया। यही नहीं जो दूध इस गावसे तथा म्युनिसिपलकी सीमाके बाहरसे आवे उस पर दो आने मनकी चुंगी लगाई गई, जो शायद संसारमें कहीं नहीं है। एक भारी टैक्स, दूसरी चुंगी, तीसरे दूधको इतनी दूर बाहरसे लानेका किराया-इन सब बातोंने मिल कर दूधको इतना महँगा कर दिया है कि अमीर गरीब सबको उसके लिए तरसना पड़ता है। झोलकुरजा नामक गाँवमें कोई ८० घोसी हैं, जिनके पास कोई
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