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पशु-धन। " नामर्दकी जोरू सबकी औरत " सो दशा भारतवर्षकी है । अमरीकाकी गौएँ निकम्मी होती हैं। उनसे अँगरेजोंकी अवश्यकता पूरी हो सकती है, पर नहीं, इन्हें तो भारतकी गौओंका ही मांस सुस्वादु लगता है। इधर मुसलमान भाई भी जिनकी संख्या लगभग ६ करोड़ है, प्रायः गोमांस खाते हैं, मानों गाय मुसलमानोंके बालकोंको दूध-घी देकर पुष्ट नहीं करती, केवल हिन्दुओंको ही पुष्ट करती है, और इनके खेत तो तुर्किस्तान और अरबसे ऊँट आकर जोत जाते हैं। भारतकृषि प्रधान देश है। यहाकी भूमिको फाड़ कर अन्न उत्पन्न करनेकी शक्ति केवल बैलोंमें हो है-इन गौपुत्रोंमें ही है। गो-वंशकी क्षीणतासे बैलोंका मिलना कठिन सा हो गया। अच्छे बैलोंका मूल्य १५० ) या २००) रुपया तक हो गया । कहिए भारतके दीन कृषक कहाँसे इतने मूल्यवान बैल खरीदें और खेती करें ! यहाँके दुर्भिक्षका कारण एक नहीं किन्तु अनेक है। जिसबात पर ध्यान दोगे वही दुर्भिक्षका कारण नहीं तो सहायक अवश्य सिद्ध होगी। ___ अमेरिका आदि देशोंमें घोड़ों और यंत्रों द्वारा भूमि जोती जाती है, अन्न बोया जाता है, खेत सींचा जाता है, निंदाई होती है, काटा जाता है, पूले बँधते हैं, अन्न निकाला जाता है इत्यादि; किन्तु भारतकी भूमि जोत डालना बोड़ोंकी शक्ति के बाहर है। यंत्र आदि खरीद कर काम चलाना भी निर्धन भारत की शक्तिले बाहर है । खैर, यदि यंत्रोंसे भूमिको जोता और बोया भी जाय तो क्या दूध-घी भी यंत्रोमेसे दुह लोगे ? ग्वालियर राव्यान्तर्गत पछार स्थानके निवासी मि० गोरावालाने अमरीकाके अनुसार घोड़ों द्वारा कृषिकार्य आरंभ
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