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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ भारतमें दुर्भिक्ष। प्रत्येक देशकी तुलना करते समय, उस देशकी जन-संख्याका भी ध्यान रखिए । भारतकी पशु-संख्या अधिक देख कर सबोंसे उच्च न मान लीजिए; क्योंकि यहाकी जन-संख्या ३१ करोड़ है। डेन्मार्कमें सन् १८८१ में ९ लाख गौएँ थीं, और सन् १९०७ में १३ हो गई। उस समय वे ४५० गेलन दूध देती थीं; किंतु अब ५८५ गेलन दूध प्रति वर्ष प्रति गाय हो गया ! अन्य देशोंमें लोग पशु और अंडजोंको वैज्ञानिक रीतिसे पालते हैं और मालामाल हो जाते हैं, पर भारतवासी अपनी मूर्खता और दरिद्रताके कारण पशु-संख्या कम करते जाते हैं। यहाँ उत्तम वैज्ञानिक पशुशालाका कहीं नामोनिशान भी नहीं है। प्रति वर्ष हमारे ना-समझ मुसलमान भाई ईदके दिन सहस्त्रों गउएँ वध कर डालते हैं-गऊ-वधके साथ ही दंगे हो जाते हैं, जिनमें अनेकों हिन्दू-मुसलसान काम आते हैं। ___ सन् १९१० ई० में भारतमें कुल अठहत्तर हजार, एक सौ बारह अँगरेज थे। इन सबका प्यारा भोजन बीफ (Beaf) अर्थात् गोमांस है। यदि प्रति जन एक पौण्ड भी मान लिया जा तो नित्य ९४६ मन या वर्षमें ३,४५,२९० मन गोमांस ये हजम कर जाते हैं। जरा ध्यान दीजिए, इतने गोमांसके लिए कितनी गौओंका वध दरकार है ? यह हम लोगोंकी प्रार्थनाओंका फल है कि आस्ट्रेलियाजहाँसे गोमांस सुविधाके साथ आ सकता है-नहीं मँगाया जाता और हमारे भारतसे ही यह जबरदस्ती लिया जाता है । अन्य देश अपने उपयोगी पशुधनको कभी नहीं देना चाहते । यह तो निर्बल भारतके सिर ही दंड है। एक कहावत भी है कि For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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