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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ भारत में दुर्भिक्ष । नियंत्रित नहीं की गई हैं । उनमें बहुतसे पशु कमजोर हैं, उनकी मेरी राय में कुछ प्रबन्ध तथा आय वृद्धि करने का कोई उपाय नहीं किया जाता निरीक्षक और परीक्षक नियत किये जायें, जो कि व्ययके विवरणको देख कर अपनी अनुमति दें, जिस पर प्रत्येक कमेटी उसीके अनुसार कार्य करनेका उद्योग करे । इसके लिये प्रत्येक कमेटी अपने फण्डके अनुसार धन दे । गोशालाओं में एक शाखा तो अच्छे पशुओंकी वृद्धि करे तथा दूसरी शाखा रोगी पशुओं का प्रबन्ध करे | इन गोशालाओं की देख-भाल के लिये प्रत्यक प्रान्तों में एक सेण्ट्रल कमेटी स्थापित की जाय । प्रत्येक कमेटीकी ओरसे चतुर पशु चिकित्सक तथा डेरी फार्मर नियुक्त हों । ये लोग गोशाला के मैनेजरको पशु-चिकित्साकी मोटी मोटी बातें बतलावें तथा दूध उत्पन्न करनेकी वैज्ञानिक रीति उन्हें सिखलावें । परन्तु जब तक नसलें न बढ़ाई जायें तथा आसपास के ग्रामों के लोगों को अच्छे तथा नीरोग बैलोंके रखनेका महत्त्व न समझाया जाय तब तक अपेक्षित उन्नति होना नितान्त असंभव है । गौ-रक्षाका एक सहल तरीका यह भी है कि प्रत्येक हिन्दू कमसे कम एक गाय अवश्य रखे तथा गाय बेचना पाप समझे । 1 । अकालमें जहाँ मनुष्योंकी मृत्यु बेहद होती है वहाँ ढोरोंका तो बचना ही कठिन बात है । उस समय २५ फी सैकड़ा ढोर जीवित रहते हैं, शेष मर जाते हैं । बंगालको छोड़ कर सारे भारतवर्ष में पशुओं की संख्या सन् १९०० में केवल ९०७ लाख थी, आस्ट्रोलिया में १,१३५ लाख पशु थे, जहाँ की आबादी कुल ४० लाख हैं आजसे ४० वर्ष पूर्व जब भारत में १४ करोड़ मनुष्य थे तब २७ करोड़ गाय बैल थे, अर्थात् एक मनुष्यको दो पशु हिस्से आते थे ' ! For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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