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क्षत्रप-वंश ।
पता चलता है कि चष्टनका स्थापित किया हुआ राज्य क्षत्रप विश्वसेन के समय ( ई० स० ३०४ ) तक बराबर चलता रहा था । श० सं० २२७ ( ई० स० ३०५ ) में उस पर क्षत्रप रुद्रसिंह द्वितीयका अधिकार होगया था । यह रुद्रसिंह स्वामी जीवदामाका पुत्र था ।
चष्टन के चाँदी और ताँबे के सिक्के मिले हैं। इनमेंके क्षत्रप उपाधिवाले चाँदी के सिक्कोंपर ब्राह्मी अक्षरोंमें “राज्ञो क्षत्रपस समोतिकपुत्रस...." और उपाधिवालों पर महाक्षत्रप राज्ञो महाक्षत्रपस घ्समोतिकपुत्रस चष्टपढ़ा गया है । तथा खरोष्ठीमें क्रमशः " रञो छ...” और चटनस " पढ़ा जाता है ।
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हम पहले लिख चुके हैं कि चष्टनके और उसके वंशजोंके सिक्कोंपर चैत्य बना होता है । इससे भी अनुमान होता है कि इसकी राज्यप्राप्तिसे आन्धोंका कुछ न कुछ सम्बन्ध अवश्य ही था । क्योंकि नहपानको जीत कर आन्ध्रवंशी शातकर्णिने ही पहले पहल उक्त चैत्यका चिह्न उसके सिक्कोंपर लगवाया था ।
यद्यपि चष्टनके तांबेके चौरस सिक्के भी मिले हैं । परंतु उन पर लिखा हुआ लेख साफ साफ नहीं पढ़ा जाता ।
जयदामा ।
[ श० सं० ४६-७२ ( ई० स० १२४ - - १५० - वि० सं० १८१-- २०७ ) के मध्य ]
यह चष्टनका पुत्र था । इसके सिक्कों पर केवल क्षत्रप उपाधि ही मिलती है । इससे अनुमान होता है कि या तो यह अपने पिता के जीते जी ही मर गया होगा या अन्धोंने हमला कर इसे अपने अधीन कर लिया होगा । यद्यपि इस विषयका अब तक कोई पूरा प्रमाण नहीं मिला है, तथापि इसके पुत्र रुद्रदामाके जूनागढ़ से मिले लेखसे पिछले
( १ ) Ep Ind., Vol. VIII, p. 36.
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