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भारतके प्राचीन राजवंश
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चष्टन । [श० सं० ४६-७२ (ई० सं० १२४-१५०%
____वि० सं०१८१-२०७ ) के मध्य ] यह समोतिकका पुत्र था । इसने नहपानके समयमें नष्ट हुए क्षत्रपोंके राज्यको फिर कायम किया।
ग्रीक-भूगोलज्ञ टालेमी ( Ptolemy ) ने अपनी पुस्तकमें चष्टनका उल्लेख किया है। यह पुस्तक उसने ई० स० १३० के करीब लिखी थी । इसीमें यह भी लिखा है कि उस समय पैठन, आन्ध्रवंशी राजा वसिष्ठीपुत्र श्रीपुलुमावीकी राजधानी थी। इससे प्रकट होता है कि चष्टन
और उक्त पुलुमावी समकालीन थे। ___ चष्टनके और इसके उत्तराधिकारियोंके सिक्कोंको देखनेसे अनुमान होता है कि चष्टनने अपना नया राजवंश कायम किया था। परन्तु सम्भवतः यह वंश भी नहपानका निकटका सम्बन्धी ही था।
नासिककी बौद्धगुफासे वासिष्ठीपुत्र पुलुमावीके समयका एक लेख मिला है । यह पुलमावीके राज्यके १८३ या १९ वें वर्षका है। इसमें गौतमीपुत्र श्रीशातकर्णिको क्षहरत-वंशका नष्ट करनेवाला और शातवाहन-वंशको उन्नत करनेवाला लिखा है । इससे अनुमान होता है कि शायद चष्टनको गौतमीपुत्रने नहपानसे छीने हुए राज्यका सूबेदार नियत किया होगा और अन्तमें वह स्वाधीन होगया होगा।
चष्टनका अधिकार मालवा, गुजरात, काठियावाड़ और राजपूतानेके कुछ हिस्से पर था। इसीने उज्जैनको अपनी राजधानी बनाया, जो अन्त तक इसके वंशजोंकी भी राजधानी रही। __इसके और इसके वंशजोंके सिक्कोंपर अपने अपने नामों और उपाधियोंके सिवा पिताके नाम और उपाधियाँ भी लिखी होती हैं । इससे
(१) J. Bm. Br. Roy. As. Soc., Vol. VII, P.51.
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