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चन्द्रावतीके देवड़ा चौहान ।
१३७३ ( ई० स० १३१७) के दो लेख और भी मिले हैं। ये आबूपरके विमलशाहके मन्दिरमें लगे हैं । ___ इसने अचलेश्वरके मन्दिरका जीर्णोद्धारकर एक गाँव उसके अर्पण किया था। इसके दो पुत्र थे-तेजसिंह और तिहुणाक ।
५-तेजसिंह। यह लुढका बड़ा पुत्र और उत्तराधिकारी था ।
इसके समयके ३ शिलालेख मिले हैं। पहला वि० सं० १३७८ (ई० स० १३२१) का, दूसरा वि० सं० १३८७ (ई० स० १३३१) का और तीसरा वि० सं० १३९३ ( ई० स० १३३६ ) का। ___ इसने ३ गाँव आबू परके वशिष्ठके प्रसिद्ध मन्दिरको अर्पण किये थे।
६-कान्हड़देव । यह तेजसिंहका पुत्र और उत्तराधिकारी था । इसके दो शिलालेख मिले हैं । इनमें पहला वि० सं० १३९४ ( ई० स. १३३७ ) का है । इससे प्रकट होता है कि इसके समय आबू परके प्रसिद्ध वशिष्ठमन्दिरका जीर्णोद्धार हुआ था । दूसरा वि० सं० १४०० ( ई० स० १३४३) का है। यह आबू परके अचलेश्वरके मन्दिरमें रक्खी इसकी पत्थरकी मूर्तिके नीचे खुदा है। ___ इसके वंशजोंने सीरोही नगर बसाया था और अब तक भी वहाँपर इसी शाखाका राज्य है। रायबहादुर पण्डित गौरीशङ्कर ओझाने इस शाखाका विस्तृत वृत्तान्त अपने “ सीरोही राज्यका इतिहास " नामक पुस्तकमें लिखा है।
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