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जालोरके सोनगरा चौहान ।
• वीरमको भागकर अपने श्वशुर उदयसिंहकी शरण लेनी पड़ी। परन्तु वहाँ पर वस्तुपालके आदेशानुसार वह मार डाला गयो ।
चतुर्विंशति प्रबन्धसे भी इस बातकी पुष्टि होती है । परन्तु यह वृत्तान्त अतिशयोक्तिपूर्ण प्रतीत होता है। हाँ, इतना तो अवश्य ही निश्चित है कि वीरम जालोर में मारा गया था ।
उदयसिंह के समयके तीन शिलालेख भीनमालसे और भी मिले हैं। इनमें पहला वि० सं० १२६२ आश्विन सुदि १३ का, दूसरा वि० सं० १२७४ भाद्रपद सुदि ९ का और तीसरा वि० सं० १३०५ आश्विन • सुदि ४ का है ।
४- चाचिगदेव |
यह उदयसिंहका बड़ा पुत्र और उत्तराधिकारी था ।
सूंघा पहाड़ी के लेख में इसे गुजरात के राजा वीरमको मारनेवाला, शत्रुशल्यको नीचा दिखाने वाला, पातुक और संग नामक पुरुषोंको हरानेवाला और नहराचल पर्वत के लिये वज्र समान लिखा है ।
वीरमके मारे जानेका वर्णन हम उदयसिंहके इतिहास में लिख चुके हैं । सम्भव है कि वस्तुपालकी साजिशसे उसे उदयसिंह के समय चाचि - गदेवने ही मारा होगा ।
भोके लेख में शल्य नामक राजाका उल्लेख है । यह लवणप्रसादका शत्रु था ।
डी० आर० भाण्डारकरका अनुमान है कि पातुक संस्कृत के प्रताप शब्द का अपभ्रंश है और चाचिगदेवके भतीजे ( मानवसिंह के पुत्र ) का नाम : प्रतापसिंह था, तथा यह इसका समकालीन भी था ।
( १ ) Ind. Ant., vol. VI, p. 190,
( २ ) Ind. Ant, Vol. I, P. 23,
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