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भारतके प्राचीन राजवंश
इससे प्रकट होता है कि उपर्युक्त कासह्रदसे आबूक पास ( सीरोही राज्य में ) के कायद्रा गाँवसे ही तात्पर्य है और करन और दाराबरस से कल्हण और धारावर्षका ही उल्लेख है । तथा उक्त केल्हणके साथ ही उसका भाई कीर्तिपाल भी युद्ध में सम्मिलित हुआ होगा । हम इस युद्धका वर्णन केल्हण के इतिहास में भी कर चुके हैं ।
कीर्तिपालका दूसरा नाम कीतू था । कुंभलगढ़ से मिले कुम्भकर्णके लेखसे प्रकट होता है कि गुहिलोत राजा कुमारसिंहने कीतूसे अपना राज्य पीछा छीन लिया था ।
किराड़के लेख के ३६ वें श्लोक में निम्नलिखित पद लिखा है:--
“ श्रीजाबालिपुरेस्थितं व्यरचयन्नद्दूलराजेश्वरः
इससे अनुमान होता है कि नाडोलका स्वामी कहलाने पर भी शायद इस नाडोलकी समतल भूमिके बजाय जालोर के पार्वत्य दुर्गम और दृढ दुर्गमें रहना अधिक लाभजनक समझा होगा और वहाँपर दुर्ग बनवानेका प्रबन्ध किया होगा । लेखादिकों में जालोरकी पर्वतमालाका उल्लेख कांचनगिरि नामसे किया गया है और कांचन नाम सोनेका है, अतः उसपरका नगर और दुर्ग भी सोनलगढ नामसे प्रसिद्ध था और वहींपर रहने के कारण कीर्तिपालके वंशज सोनगरा कहलाये । इसका तात्पर्य सोनगिरीय - अर्थात् सुवर्णगिरिके निवासियोंसे है ।
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इसके तीन पुत्र थे - समरसिंह, लाखणपाल और अभयपाल | इसकी कन्याका नाम रूदलदेवी थी । इसने जालोर में दो शिवमन्दिर बनवाये थे ।
जालोर के तोपखाने के दरवाजे पर वि० सं० १९७५ का एक लेख लगा है। इसमें परमारके वंश में क्रमशः वाक्पतिराज, चन्दन, अपराजित, विज्जल, धारावर्ष, वीसल और सिंधुराजका होना लिखा है। इससे
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