________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रणथम्भोरके चौहान।
बाद सुलतान रणथंभोरका परगना अपने भाई उलफखां ( उलगखां) को सौंप कर दिल्ली लौट गयो ।" । ___ हम पहले हम्मीर-महाकाव्यसे सुलतानकी चढ़ाईका हाल उद्धृत कर चुके हैं । उसमें रणथंभोर पर अलाउद्दीनकी तीन चढ़ाइयोंका वर्णन है । परन्तु फारसी तवारीखोंसे उद्धृत किये हुए वृत्तान्तसे केवल दो बार चढ़ाई होनेका पता चलता है । अतः उक्त तीसरी चढ़ाई अलाउद्दीनकी न होकर जलालुद्दीन फीरोज खिलजीकी होगी । इस बातकी पुष्टि फरिश्ताके निम्न लिखित लेखसे होती है:
" हि० स० ६९० (वि. स. १३४८-ई० स० १२९१) में सुलतान जलालुद्दीन फीरोज खिलजी रणथंभोरकी तरफ फसाद मिटानेके इरादेसे रवाना हुआ । परन्तु शत्रु रणथंभोरके किले में घुस गया। इसपर सुलतानने किलेकी परीक्षा की। पर अन्तमें वह निराश होकर उज्जैनकी तरफ चला गया । "
चन्द्रशेखर वाजपेयी नामक कविने हिन्दीमें हम्मीर-हठ नामक काव्य बनाया था । उस कविका जन्म वि० सं० १८५५ और देहान्त वि. सं० १९३२ में हुआ था । उसके रचे काव्यमें इस प्रकार लिखा है:___“ अलाउद्दीनकी मरहटी बेगमके साथ मीर महिमा नामक मंगोल सर्दारका गुप्त प्रेम हो गया था । जब बादशाहको इसका पता लगा तब मीर महिमा भागकर हम्मीरकी शरणमें चला आया । अलाउद्दीनने दूत भेजकर हम्मीरसे कहलवाया कि उक्त मीरको मेरे पास भेज दो। परन्तु हम्मीरने शरणागतकी रक्षा करना उचित जान उसके देनेसे इनकार कर दिया । इसपर सुलतान बहुत क्रुद्ध हुआ और उसने हम्मीरपर
(१) Brigg's Farishta, Vol. I, P. 837-344, (२) Brigg's Farista, Vol. I, P. 301.
२७७
For Private and Personal Use Only