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रणथम्भारके चौहान।
(ई० स० १२९६ ) में अलाउद्दीन खिलजी गद्दीपर बैठा था । परन्तु हम्मीर उसके पूर्व ही राज्यका स्वामी हो चुका था।
इसी उपर्युक्त वृत्तान्तमें हम्मीरके भाईका नाम भोज लिखा गया है । वह शायद जैत्रसिंहका दासीपुत्र होगा । क्यों कि हम्मीर-महाकाव्यके नवें सर्गके १५४ वें श्लोकमें लिखा है कि पाण्डुके भ्राता विदुरकी तरह भोज हम्मीरका छोटा भाई था। _ मिथिलाके राजा ( देवीसिंहके पुत्र ) शिवसिंहदेवकी सभामें विद्यापति नामक एक पण्डित था । उसने पुरुष-परीक्षा नामक पुस्तक बनाई थी । वह वि० सं० १४५६ ( ई० स० १३९९) में विद्यमान था । अतः उसका समय हम्मीरके समयसे १०० वर्षके करीब ही आता है ! उक्त पुस्तककी दूसरी कथामें लिखा है:__“ एक बार दिल्लीका सुलतान अलाउद्दीन अपने सेनापति महिमसाही पर बहुत क्रुद्ध हुआ । यह देख भयभीत महिमसाही रणथंभोरके राजा हम्मीरदेवकी शरणमें जा रहा । इस पर अलाउद्दीनने बड़ी भारी सेना ले उस फिलेको घेर लिया । हम्मीरने भी युद्धका जवाब युद्धसे ही देना उचित समझा । एक दिनके युद्धके अनन्तर बादशाहने दूतद्वारा हम्मीरसे कहलाया कि तुम मेरे अपराधी महिमसाहीको मुझे दे दो, नहीं तो, कल तुम्हें भी उसीके साथ यमसदनकी यात्रा करनी पड़ेगी । इसके उत्तरमें दूतसे हम्मीरने केवल इतना ही कहा कि इसका जवाब हम तुम्हारे स्वामीको जवाबसे न देकर तलवारसे ही देंगे । अनन्तर करीब तीन वर्ष तक युद्ध होता रहा । इसमें सुलतानकी आधी सेना नष्ट हो गई। यह हाल देख उसने लौट जानेका विचार किया। परन्तु इसी समय रायमल्ल और रामपाल नामके हम्मीरके दो सेनापति अलाउद्दीनसे मिल गये और उन्होंने किलेमें खाद्य पदार्थोके समाप्त हो जानेकी सूचना उसे दे दी । तथा यह भी विश्वास दिलाया कि दो तीन दिनमें ही हम १८
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