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रणथम्भोर के चौहान ।
कुछ समय बाद एक दिन दिल्लीश्वरसे भोजने निवेदन किया कि हम्मीर के प्रजाजन धर्मसिंहसे बहुत दुखित हो रहे हैं। यदि ऐसे मोके पर चढ़ाई कर फसल नष्ट कर दी जाय तो प्रजा दुखित हो उसका साथ छोड़ देगी। यह सुन अलाउद्दीनने एक लाख सवार साथ दे उलगखांको रणथंभोर की तरफ भेजा । जब यह हाल हम्मीरको मालूम हुआ तब उसने वीरम, महिमसाही, जाजदेव, गर्भरूक, रतिपाल, तीचर, मंगोल, रणमल्ल, बेचर आदिको अलग अलग सेना देकर लड़नेको भेजा। इन सबने मिलकर उलंगखाँकी सेना पर हमला किया। इससे हारकर उसे दिल्ली की तरफ लौट जाना पड़ा । इसके बाद हम्मीरकी सेवामें रहनेवाले मुसलमान सरदारोंने भोजकी जागीर पर आक्रमण किया और वे पीथसिंहको पकड़ कर रणथंभोर ले आये । यह वृत्तान्त सुन अलाउद्दीन बहुत ही क्रुद्ध हुआ और उसने अपने अधीनके नरपतियों सहित अपने भाई उलगखांको और नसरतखांको रणथंभोर पर आक्रमण करनेको भेजा । इन्होंने वहाँ पहुँच दूत द्वारा हम्मीर से कहलाया कि यदि तुम एकलाख मुहरें, चार हाथी, और तीन सौ घोड़े भेट देकर अपनी कन्याका विवाह सुलतानके साथ कर दो, अथवा बादशाहकी आज्ञाका उल्लंघन कर तुम्हारे पास आये हुए चार मंगोल सर्दारोंको हमें सौंप दो, तो हम लौट जानेको तैयार हैं। परन्तु यदि तुम हमारी बात नहीं मानोगे तो तुम्हारा सारा देश नष्ट भ्रष्ट कर दिया जायगा । यह सुन हम्मीरने क्रुद्ध हो उस दूतको सभासे निकलवा दिया । इस पर भीषण संग्राम हुआ। इस युद्ध में नसरतखां गोलेकी चोटसे मारा गया । यह ख़बर सुन बादशाह अलाउद्दीन सेनासहित स्वयं आपहुँचा । दूसरे दिन दिन तुमुल संग्राम हुआ । इसमें ८५००० मुसलमान मारे गये | यह देख बादशाहने हम्मीरके एक सेनापति रतिपालको रणथंभोर के राज्यकी लालच देकर अपनी ओर मिला लिया । रतिपालने सहकारी सेनापति रणमल्लको भी इस जालमें शरीक कर लिया और ये
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