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रणथम्भोरके चौहान ।
मुसलमानोंसे दुखित हुए बहुतसे राजा इससे आ मिले।"
यद्यपि उपर्युक्त काव्यका की वीरनारायणको जलालुद्दीनका समकालीन बतलाता है, तथापि प्रबन्धकोशके अन्तकी वंशावलीमें इसका सुलतान शहाबुद्दीन द्वारा मारा जाना लिखा है ।
वि० सं० १३४७ में जलालुद्दीन खिलजी दिल्लीके तख्तपर बैठा, उस समय रणथंभोर पर हम्मीरका अधिकार था । अतः वीरनारायणके · समय दिल्लीका बादशाह शम्सुद्दीन ही था ।
तबकाते नासिरीमें लिखा है:
"हि० स० ६२३ ( वि० सं० १२८३-ई० स० १२२६ ) में सुल. तानने रणथंभोरके किलेपर चढ़ाई की और कुछ महीनोंमें ही उसपर अधिकार कर लिया।"
फरिश्ता लिखता है कि "हि० स०६२३ ( वि० सं० १२८३-ई० स० १२२६) में शम्सुद्दीनने रणथंभोरके किलेपर अधिकार कर लिया।"
५-वाग्भटदेव ( बाहड़देव)। यह प्रल्हाददेवका छोटा भाई था। हम्मीर-महाकाव्यमें और रणथंभोरके निकटके कुँवालजीके कुंडके लेखमें इसका नाम वाग्भट और प्रबन्धकोशके अन्तकी वंशावलीमें बाहड़देव लिखा है । यह दूसरा नाम भी वाग्भटका ही प्राकृत
हम पहले हम्मीर-महाकाव्यके अनुसार लिख चुके हैं कि जिस समय शम्सुद्दीनने रणथंभोरके किले पर अधिकार कर वाग्भटको मरवा डालनेका उपाय किया उसी समय इसने मालवेके राजाको मार वहाँ पर अपना अधिकार जमा लिया। (१) Elliot's History of India Vol. II, P. 324-25. (२) Brigg's Farishta Vol, I., P.210.
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