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भारतके प्राचीन राजवंश
कारण इसने अपने छोटे भाई वाग्भटको बुलाकर कहा कि वीरनारायणकी देखभालका भार मैं तुम्हें सौंपता हूँ । इसपर कुमारकी दुष्ट प्रकृतिका विचारकर वाग्भटने उत्तर दिया कि होनहार ईश्वर के अधीन है । परन्तु मैंने जिस प्रकार आपकी सेवा की है उसी प्रकार उसकी भी करूँगा । ४ - वीरनारायण |
यह प्रल्हाददेवका पुत्र और उत्तराधिकारी था । हम्मीर महाकाव्य में लिखा है:
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यह आम्रपुरी (आमेर ) के कछवाहा राजाकी पुत्री से विवाह करने गया । परन्तु सुलतान जलालुद्दीन के हमला करनेके कारण इसे भाग कर रणथंभोर आना पड़ा । यद्यपि सुलतानने भी इसका पीछा किया और रणथंभोर को घेर लिया, तथापि अन्तमें उसे निराश होकर ही लौटना पड़ा । जब सुलतानने इस तरह अपना काम बनते न देखा तब कपटजाल रचा और दूतद्वारा कहलवाया कि 'मैं तुम्हारी वीरता से बहुत प्रसन्न हूँ और तुमसे मित्रता करना चाहता हूँ | तथा ईश्वरको साक्षी रखकर प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं इसमें किसी प्रकारकी गड़बड़ नहीं करूँगा।' इन बातोंपर विश्वासकर वीरनारायण सुलतान के यास जानेको उद्यत हुआ । इस पर वाग्भटने उसे बहुत समझाया कि शत्रुका विश्वास करना किसी प्रकार भी उचित नही है, परन्तु इसने एक न मानी । इसपर दुखित हो वाग्भट वहाँसे निकल गया और माल
में जा रहा । वीरनारायण भी यथासमय दिल्ली पहुँचा । पहले तो बादशाहने इसका बहुत सन्मान किया, परन्तु अन्तमें विष दिलवाकर मरवा डाला और रणथंभोरपर अपना अधिकार कर लिया । इस कामसे निश्चिन्त हो उसने मालवेके राजाको वाग्भटको मार डालनेके लिये राजी किया । जब यह वृत्तान्त वाग्भटको मिला तब उसने पहले ही मालवाधिपतिको मारकर उसके राज्यपर अधिकार कर लिया ।
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