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चौहान-वंश ।
पहुँचा। यह गाँव थानेश्वरसे १८ मीले और दिल्लीसे ८० मीलपर तिरोरी नामसे प्रसिद्ध है । यहाँपर दोनों सेनाओंकी मुठभेड़ हुई । पहले ही हमलेमें सुलतानकी फौजने पीठ दिखाई। परन्तु सुलतान बचे हुए थोड़ेसे आदमियोंके साथ युद्ध में डटा रहा । इस अवसर पर चामुंडरायने सुलतानकी तरफ अपना हाथी चलाया । यह देख सुलतानने चामुण्डरायके मुखपर भाला मारा जिससे उसके कई दाँत टूट गये। इसपर क्रूद्धहो दिल्लीश्वरने भी सुलतानके हाथ पर इस जोरसे तीर मारा कि वह मूर्छित हो गया । परन्तु उसके घोड़े परसे गिरने के पूर्व ही एक मुसलमान सिपाही उसके घोड़ेपर चढ़ गया और उसे ले रणक्षेत्रसे निकल भागा। राजपूतोंने ४० मील तक उसकी सेनाका पीछा किया । इस प्रकार युद्ध में हारकर बादशाह लाहौर होता हुआ गोर पहुँचा । वहाँपर उसने; जो सर्दार युद्धमें उसे छोड़कर भाग गये थे उनके मुखपर जौसे भरे हुए तोबरे लटकवाकर सारे शहरमें फिरवाया । वहाँसे सुलतान गजनीको चला गया। उसके चले जाने के बाद हिन्दू राजाओंने भटिंडेपर घेरा डाला और १३ महीनेतक घेरे रहने के बाद उसे अपने अधिकारमें कर लिया।"
ताजुलंम आसिरके आधारपर फरिश्ताने लिखा है कि “ सुलतान घायल होकर घोड़ेसे गिर पड़ा और दिनभर मुरदोंके साथ रणक्षेत्रमें पड़ा रहा । जब अंधेरा हुआ तब उसके अंगरक्षकोंके एक दलने वहाँ पहुँच कर उसे तलाश करना आरम्भ किया और मिल जाने पर वह अपने कैंपमें पहुँचाया गया।"
पृथ्वीराज-विजयमें लिखा है कि, इस पराजयसे सुलतानको इतना खेद हुआ कि उसने उत्तमोत्तम वस्त्रोंका पहनना और अन्तःपुरमें आरा.. मकी नींद सोना छोड़ दिया।
(१) Brigg's Farishta Vol. I, P. 111-173. (२) नवलकिशोर प्रेसकी छपी फरिश्ताके इतिहासकी पुस्तक, पृ० ५७ ।
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