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भारतके प्राचीन राजवंश
( पृथ्वीराज ) ने उस किले पर चढ़ाई की। इस पर शहाबुद्दीनको गजनीसे वापिस आना पड़ा । वि० सं० १२४७ ( ई० स० ११९१ ) में तिरौरी ( कर्नाल जिला ) के पास लड़ाई हुई। इस युद्धमें हिन्दुस्तानके सब राजा रायकोला ( पृथ्वीराज ) की तरफ थे। सुलतानने हाथी पर बैठे हुए दिल्ली के राजा गोविंदराय पर हमला किया और अपने भालेसे उसके दो दाँत तोड़ डाले । इसी समय उक्त राजाने वारकर सुलतानके हाथको जखमी कर दिया । इस घावकी पीड़ासे सुलतानका घोड़े पर उहरना मुशकिल हो गया । इस पर मुसलमानी सेना भाग खड़ी हुई । सुलतान भी घोड़ेसे गिरने ही वाला था कि इतनेमें एक बहादुर खिलजी सिपाही लपक कर बादशाहके घोड़े पर चढ़ बैठा और घोड़ेको भगाकर बादशाहको रणक्षेत्रसे निकाल ले गया । यह हालत देख राजपूतोंने मुसलमानोंकी फौजका पीछा किया और भटिंडा नामक नगरको जा घेरा । तेरह महीनेके घेरेके बाद उसपर राजपूतोंका कब्जा हुआ ।" तारीख़ फरिरश्तामें लिखा है:
" सुलतान मुहम्मद गोरी ( शहाबुद्दीन गोरी ) ने हिजरी सन् ५८७ ( वि० सं० १२४७-ई० स० ११९१ ) में फिर हिन्दुस्तान पर चढ़ाई की
और अजमेरकी तरफ जाते हुए भटिंडे पर कब्जा कर लिया । तथा उसकी हिफाजतके लिये एक हजारसे अधिक सवार और करीब उतने ही पैदल सिपाही देकर मलिक जियाउद्दीन तुजुकीको वहाँ पर नियत कर दिया । वापिस लौटते समय सुना कि अजमेरका राजा पिथोराय ( पृथ्वीराज ) और उसका भाई दिल्लीश्वर चावंडराय ( गोविंदराय ) हिन्दुस्तानके दूसरे राजाओं के साथ दो लाख सवार और तीन हजार हाथी लेकर भटिंडाकी तरफ आ रहा है। यह - सुन वह स्वयं भटिंडेसे आगे बढ़ सरस्वतीके तट परके नराइन गाँवके पास
(?) History of Indid, by Elliot, Vol II, P. 295–96.
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