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भारतके प्राचीन राजवंश
बल्लालसेन अपनी ही इच्छाके अनुसार वर्ण-व्यवस्थाके नियम बनाया करता था । यह भी इससे स्पष्ट प्रतीत होता है।
आनन्द-भट्टने यह भी लिखा है कि बल्लालसेन बौद्धों (तान्त्रिक बौद्धों ) का अनुयायी था । वह १२ वर्षकी नटियों और चाण्डालिनियोंका पूजन किया करता था। परन्तु अन्तमें बदरिकाश्रम-निवासी एक साधुके उपदेशसे वह शैव हो गया था। उसने यह भी लिखा है कि ग्वाले, तम्बोली, कसेरे, ताँती ( कपड़े बुननेवाले), तेली, गन्धी, वैद्य
और शासिक ( शङ्खकी चूड़ियाँ बनानेवाले ) ये सब सच्छूद्र हैं और सब सच्छूद्रोंमें कायस्थ श्रेष्ठ हैं।
सिंहगिरिके आधार पर, अनन्त-भट्टने यह भी लिखा है कि सूर्यमण्डलसे शाक-द्वीपमें गिरे हुए मग-जातिके लोग ब्राह्मण हैं। __ इतिहासवेत्ताओंका अनुमान है कि ये लोग पहले ईरानकी तरफ रहते थे। वहाँ ये आचार्यका काम किया करते थे। वहींसे ये इस देशमें आये। ये स्वयं भी अपनेको शाक-द्वीप-शकोंके द्वीपक-ब्राह्मण कहते हैं । ये फलितज्योतिषके विद्वान थे । अनुमान है कि भारतमें फलितज्योतिषका प्रचार इन्हीं लोगोंके द्वारा हुआ होगा। क्योंकि वैदिक ज्योतिषमें फलित नहीं है।
५५० ईसवीके निकटकी लिखी हुई एक प्राचीन संस्कृत-पुस्तक नेपालमें मिली है । उसमें लिखा है
। ब्राह्मणानां मगानां च समत्वं जायते कलौ । अर्थात् कलियुगमें ब्राह्मणोंका और मग लोगोंका दरजा बराबर हो जायगा । इससे सिद्ध है कि उक्त पुस्तकके रचना-काल (विक्रम संवत् ६०७ ) में ब्राह्मण मगोंसे श्रेष्ठ गिने जाते थे । (१) J. Bm. A. S. Pro., 1902, January. (२) J. Bm. A.S. Pro., 1901, P. 75. (३) J. Bm. A. S. Pro., 1902, P. 3.
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