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भारतके प्राचीन राजवंश
उन्नति रुक गई । परन्तु उनके राज्यकी समाप्ति के साथ ही साथ बौद्ध धर्मका लोप और वैदिक धर्मकी उन्नतिका प्रारम्भ हो गया तथा वर्णाश्रम-व्यवस्थासे रहित बौद्ध लोग वैदिक धर्मावलम्बियोंमें मिलने लगे। इस समय बल्लालसेनने वर्णव्यवस्थाका नया प्रबन्ध किया और आदिशर द्वारा लाये गये कुलीन ब्राह्मणों का बहुत सन्मान किया ।
बल्लालसेन-चरितमें लिखा है
"बल्लालसेनने एक महायज्ञ किया। उसमें चारों वर्गों के पुरुष निमत्रित किये गये । बहुतसे मिश्रित वर्णके लोग भी बुलाये गये। भोजन-पान इत्यादिसे योग्यतानुसार उनका सन्मान भी किया गया। उस समय, अपनेको वैश्य समझनेवाले सोनार बनिये अपने लिए कोई विशेष प्रबन्ध न देख कर असन्तुष्ट हो गये। इस पर क्रुद्ध होकर राजाने उन्हें सच्छूद्रों ( अन्त्यजोंसे ऊपरके दरजेवाले शूद्रों) में रहनेकी आज्ञा दी, जिससे वे लोग वहाँसे चले गये । तब बल्लालसेनने जातिमें उनका दरजा घटा दिया और यह आज्ञा दी कि यदि कोई ब्राह्मण इनको पढ़ावेगा या इनके यहाँ कोई कर्म करावेगा तो वह जातिसे बहिष्कृत कर दिया जायगा । साथ ही उन सोनार-बनियोंके यज्ञोपवीत उतरवा लेनेका भी हुक्म दिया। इससे असन्तुष्ट होकर बहुतसे बनिये उसके राज्यसे बाहर चले गये। परन्तु जो वहीं रहे उनके यज्ञोपवीत उतरवा लिये गये । उन दिनों वहाँ पर ब्राह्मण लोग दास-दासियोंका व्यापार किया करते थे। यही बनिये उनको रुपया कर्ज दिया करते थे। परन्तु पूर्वोक्त घटनाके वाद उन बनियोंने ब्राह्मणोंको धन देना बन्द कर दिया । फलतः उनका व्यापार भी बन्द हो गया। तब सेवक न मिलने लगे। लोगोंको बड़ा कष्ट होने लगा । उसे दूर करनेके लिए बल्लालसेनने आज्ञा दी कि आजसे कैवर्त ( नाव चलानेवाले और मछली मारनेवाले अर्थात् मल्लाह और मछुए ) लोग सच्छूद्रोंमें गिने जायँ और उनको सेवक रख कर, उनके
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