________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१६)
जब पुण्यार्थ दी हुई जागीरमें ऐसा होता था तब कलचुरी राजाकं अपने राज्यमें तो और भी बड़े बड़े लोकहितके काम होते होंगे। परन्तु उनका लिखा पूरा विवरण न मिलनेसे लाचारी है। ___ कलचुरियोंके राज्यके साथ ही उनको जाति भी जाती रही । अब कहीं कोई उनका नाम लेनेवाला नहीं सुना जाता है। हैहयवंशके कुछ लोग जरूर मध्यप्रदेश, संयुक्तप्रान्त और बिहारमें पाये जाते हैं । हमको मुनशी माधव गोपालसे पता लगा है कि रतनपुर ( मध्यप्रदेश ) में हैहयवंशियोंका राज्य उनके मूल पुरुष सिद्धबामसे चला आता था । पर यहाँके ५६ वें राजा रघुनाथासिंहको मरहटोंने रतनपुरसे निकाल दिया। उसकी औलादमें रतनगोपालसिंह इस समय उसी जिलेमें ५ गाँवोंके जागीरदार हैं । यह रत्नपुर सिद्धबामके बेटे मोरध्वजने बसाया था ।
संयुक्तप्रान्तमें हलदी जिले बलियाके राजा हैहयवंशी हैं। परन्तु वे अपनेको सूरजवंशी बताते हैं।
ऐसे ही कुछ हैहयवंशी बिहारमें भी सुने जाते हैं, जिनके पास कुछ जमीदारी रह गई है।
परमार-वंश। हैहयवंशके बाद परमार वंशका इतिहास लिखा गया है ।।
भीनमाल ( मारवाड़) में पहले पहल इस ( पवार ) वंशका राज्य कृष्णराजसे कायम हुआ था । यह आबूके राजा धन्धुकका बेटा और देवराजका पोता था । परमारोंके आबू पर अधिकार करनेके पहले हस्तिकुंडीके हyडिये राठोड़ोंने भीलोंसे छीनकर उस प्रदेश पर अपना राज्य कायम किया था। __ आबूके शिलालेखोंमें परमारोंके मूल पुरुषका नाम धूमराज लिखा है । मारवाड़
और मालवेके पवार राजा भी उसीकी औलादमें थे । हम ऊपर लिख चुके हैं कि कृष्णराजने भीनमाल ( मारवाड़ ) में अपना राज्य जमाया । वहींसे इनकी कई शाखाओंने निकल कर जालोर, सिवाना, कोटकिराडू, पूंगल, लुगवा, पारकर, मण्डौर आदि गाँवों में अपना राज्य कायम किया । कुछ समय बाद परमारोंकी आबूवाली
(१) सहीफए जरीन, जिल्द ।।
For Private and Personal Use Only