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९. महाभाण्डागारिक-दीवान खज़ाना । १० महाध्यक्ष-नाज़िरकुल ।।
इसी प्रकार हरएक शासन विभागके लेखक ( अहलकार ) भी अलग अलग होते थे; जैसे धर्मविभागका लेखक-धर्मलेखी।"
उसी ताम्रपत्रसे यह भी जाना जाता है कि जो काम आजकल बंदोबस्तका महकमा करता है वह उस समय भी होता था। गाँवोंके चारों तरफ़की ह बँधी होती थीं । जहाँ कुदरती हद्द नदी या पहाड़ वगैरहकी नहीं होती थी वहाँ पर खाई खोदकर बना ली जाती थी। दफ़तरोंमें हदबंदीके प्रमाणस्वरूप बस्ती, खेत, बाग, नदी, नाला, झील, तालाव, पहाड़, जंगल, घास, आम, महुआ, गढ़े, गुफा वगैरह जो कुछ भी होता था उसका दाखला रहता था, और तो क्या आने जानेके रास्ते भी दर्ज रहते थे। जब किसी गाँवका दानपत्र लिखा जाता था तब उसमें साफ़ तौरसे खोल दिया जाता था कि किस किस चीज़का अधिकार दान लेने वालेको होगा और किस किसका नहीं।
मन्दिर, गोचर और पहले दान की हुई जमीन उसके अधिकारसे बाहर रहती थी। ___ कलचुरियोंका राज्य, उनके शिलालेखोंमें, त्रिकलिंग अर्थात् कलिंग नामके तीन देशोंपर और उनके बाहर तक भी होना लिखा मिलता है । सम्भव है कि यह बढ़ाकर लिखा गया हो । पर एक बातसे यह सही जान पड़ता है । वह यह है कि इन्होंने अपने कुलगुरु पाशुपतपंथके महन्तोंको ३ लाख गाँव दान दिये थे । यह संख्या साधारण नहीं है । परन्तु वे महन्त भी आजकलके महन्तों जैसे स्वार्थी नहीं थे बल्कि गुणी, साहित्यसेवी, उदार और परमार्थी थे। वे अपनी उस बड़ी भारी जागीरकी आमदनीको लोकहितके कामोंमें लगाते थे । इन महन्तों से विश्वेश्वर शंभु नामक महन्त; जो कि संवत् १३०० के आसपास विद्यमान था बड़ा ही सज्जन, सुशील और धर्मात्मा था । इसने सब जातियोंके लिये सदाव्रत खोल देनेके सिवाय दवाखाना, दाईखाना और महाविद्यालयका भी प्रबन्ध किया था। संगीतशाला और नृत्यशालामें नाच और गाना सिखानेके लिये काश्मीर देशसे गवैये और कत्थक बुलवाये थे ।
(१) जबलपुर-ज्योति ।
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