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मालवेके परमार ।
प्रथम ताम्रपत्र वि० सं० १२६७ (ई० स० १२१०) का है । वह मण्डपदुर्गमें दिया गया था । दूसरा वि० सं० १२७० (ई० स० १२१३) का है । वह भृगु कच्छमें सूर्यग्रहण पर दिया गया था। तीसरा वि० सं० १२७२ (ई० स० १२१५) का है । वह अमरेश्वरमें दिया गया था। यह अमरेश्वर तीर्थ रेवा और कपिलाके सङ्गम पर है । इन ताम्रपत्रोंसे अर्जुनवर्माका ६ वर्षसे अधिक राज्य करना प्रकट होता है । ये ताम्रपत्र गौड़जातिके ब्राह्मण मदन द्वारा लिखे गये थे। इनमें अर्जुनवर्माका खिताब महाराज लिखा है और वंशावली इस प्रकार दी गई है:-भोज, उदयादित्य, नरवर्मा, यशोवर्मा, अजयवर्मा, विन्ध्यवर्मा, सुभटवर्मा और अर्जुनवर्मा । इसके ताम्रपत्रोंसे यह भी प्रकट होता है कि इसने युद्धमें जयसिंहको हराया था। इस लड़ाईका जिक्र पारिजातमञ्जरी नामक नाटिकामें भी है । इस नाटिकाका दूसरा नाम विजयश्री और इसके कर्ताका नाम बालसरस्वती मदन है । यह मदन अर्जुनवर्माका गुरु और आशाधरका शिष्य था। इस नाटिकाके पूर्वके दो अङ्कोंका पता, ई० स० १९०३ में, श्रीयुत काशीनाथ लेले महाशयने लगाया थाँ । ये एक पत्थरकी शिला पर खदे हुए हैं। यह शिला कमाल मौला मसजिदमें लगी हुई है । इस नाटिकामें लिखा है कि यह युद्ध पर्व-पर्वत (पावागढ़) के पास हुआ था । शायद यह मालवा और गुजरातके बीचकी पहाड़ी होगी। यह नाटिका प्रथम ही प्रथम सरस्वतीके मन्दिरमें वसन्तोत्सव 'पर खेली गई थी। इसमें चौलुक्यवंशकी सर्वकला नामक रानीकी ईर्ष्याका वर्णन भी है । अर्जुनवर्मदेवके मन्त्रीका नाम नारायण था। इस नाटिकामें धारा नगरीका वर्णन इस प्रकार किया गया है:-धारामें चौरासी चौक और अनेक सुन्दर मन्दिर थे । उन्हींमें सरस्वतीका भी एक
(१) J. B. A. S., Vol. , p. 078. (२) J. A. 0. 8., Vol. 'VII, p. 32. (३) J. A. 0. S., Vol. VII, P. 25. (४) Parmars of Dhar and Malwa, p. 39.
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