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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश मालवेके राजा सोहडने भीमदेव पर चढ़ाई की । परन्तु जिस समय वह गुजरातकी सरहदके पास पहुँचा उस समय भीमदेव के मन्त्रीने उसे यह श्लोक लिख भेजाः प्रतापो राजमार्तण्ड पूर्वस्यामेव राजते । स एव विलयं याति पश्चिमाशावलम्बिनः ॥ १॥ अर्थात्-हे नृपसूर्य ! सूर्यका प्रताप पूर्व दिशाहीमें शोभायमान होता है । जब वह पश्चिम दिशामें जाता है तब नष्ट हो जाता है । इस श्लोकको सुन कर सोहड़ लौट गया। कीर्तिकौमुदीमें लिखा है कि भीमदेवके राज्य-समयमें मालवेके राजा (सुभटवर्मानं ) ने गुजरात पर चढ़ाई की। परन्तु बघेल लवणप्रसादने उसे पीछे लौट जानेके लिये बाध्य किया। ___ इन लेखोंसे भी अर्जुनवर्माके ताम्रपत्रमें कही गई बातहीकी पुष्टि होती है । सम्भवतः इस चढ़ाईमें देवगिरिका यादव राजा सिंघण भी सुभटवर्माके साथ था । शायद उस समय सुभटवर्मा, सिंघणके सामन्तकी हैसियतमें, रहा होगा । क्योंकि बम्बई गैजेटियर आदिसे सिंघणका सुभटवर्माको अपने अधीन कर लेना पाया जाता है । इन उल्लिखित प्रमाणोंसे यह अनुमान भी होता है कि गुजरात पर की गई यह चढ़ाई ई. स० १२०९-१० के बीचमें हुई होगी। इसके पुत्रका नाम अर्जुनवर्मदेव था । १८-अर्जुनवर्मदेव। यह अपने पिता सुभटवर्माका उत्तराधिकारी हुआ। यह विद्वान, कवि और गान-विद्यामें निपुण था। इसके तीन ताम्रपत्र मिले हैं, उनमें (१) कीर्तिकौमुदी, २-७४ । (२) Bombay Gazetteer, Vol. I, Pt. II, P. 240. For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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