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भारतके प्राचीन राजवंश
अनुमानसे शायद इसका समय वि० सं० ११९९ के आसपास होगा। इसके बाद वि० सं० १२०० ( ई० स० ११४३) श्रावण शुक्ला पूर्णिमाका, महाकुमार लक्ष्मीवर्माका, दान-पत्र मिला है। इसमें अपने पिता यशोवर्माके वि० सं० ११९१ में दिये हुए दानकी स्वीकृति है । इससे यह भी अनुमान होता है कि सम्भवतः वि० सं० १२०० के पूर्व ही जयवर्मासे राज्य छीना गया होगा। इस दान-पत्रमें लक्ष्मीवर्माने अपनेको महाराजाधिराजके बदले महाकुमार लिखा है । इस लिए शायद उस समय तक जयवर्मा जीवित रहा होगा । परन्तु वह अजयवर्माकी कैदमें रहा हो तो आश्चर्य नहीं।
वि० सं० १२३६ ( ई० स०११७९) वैशाख-शुक्ला पूर्णिमाका, लक्ष्मीवर्माके पुत्र हरिश्चन्द्रका, दानपत्र भी मिला है। तथा उसके बादका वि० सं० १२५६ ( ई०स० ११९९ ) वैशाख-सुदी पूर्णिमाका, हरिश्चन्द्रके पुत्र उदयवीका दानपत्र मिला है। __ यशोवर्माका उल्लिखित ताम्रपत्र धारासे दिया गया था, जयवर्मा का वर्द्धमानपुरसे जो शायद बड़वानी कहलाता है । लक्ष्मीवर्माका राजसयनसे दिया गया था, जो अब रायसेन कहाता है । वह भोपालराज्यमें है । हरिश्चन्द्रका पिपलिआनगर (भोपाल-राज्य ) से दिया गया था। यह नर्मदाके उत्तरमें है । उदयवर्माका गुवाड़ाघट्ट या गिन्नूरगढ़से दिया गया था । नर्मदाके उत्तर में, इस नामका एक छोटासा किला भोपाल-राज्यमें है।
इससे मालूम होता है कि 'क' शाखाका अधिकार भिलसा और नर्मदाके बीच और 'ख' शाखाका अधिकार धाराके चारों तरफ था ।
(१) Ind. Ant., vol. XIX. p. 351. (२) J. B. A. S., Vol... VII, p. 736. (३) Ind. Ant., Vol. XVI, P,254,
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