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मालवेके परमार।
यह निर्बल राजा था । इस कारण इधर तो उस पर गुजरातवालोंका दबाव पड़ा और उधर उसके भाईने बगावत की। इससे वह अपनी रक्षा न कर सका। ऐसी हालतमें उसको गद्दीसे उतार कर उसके स्थान पर उसके भाई अजयवर्माने अधिकार कर लिया । अजयवर्मासे परमारोंकी 'ख' शाखाका प्रारम्भ हुआ; तथा इसी उतार चढ़ावमें उसके दूसरे भाई लक्ष्मीवर्माने जयवर्मासे मिल कर कुछ परगने दबा लिये । उससे 'क' शाखा चली । अपने ताम्रपत्रोंमें इस 'क' शाखाके राजाने जयवर्माको अपना पूर्वाधिकारी लिखा है । इस प्रकार मालवेके परमारराजाओंकी दो शाखायें चली:
१४-यशोवर्मा
(क)
....... (ख)
१५-जयवर्मा १६- लक्ष्मीवर्मा १७-हरिश्चन्द्र १८–उदयवर्मा
(१५)--अजयवर्मा (१६)--विन्ध्यवर्मा (१७)-सुभटवर्मा (१८)-अर्जुनवर्मा
१९-देवपालदेव (हरिश्चन्द्रदेवका पुत्र ) 'क' शाखाके लेखोंका क्रम इस प्रकार है:
पूर्वोक्त वि० सं० ११९१ (ई० स० ११३४ ) के यशोवर्माके दानपत्रके बादके जयवर्माके दान-पत्र का प्रथम पत्र मिला है। यद्यपि इसमें संवत् न होनेसे इसका ठीक समय निश्चित नहीं हो सकता, तथापि (१) Ind. Ant., Vol. XIX, p. 353. (२) Ep. Ind., Vol. I, p. 350.
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