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मालवके परमार।
कुन्तल-देशका परमर्दी शायद कल्याणका पश्चिमी चालुक्य राजा पेमें (पेर्माडी-परमर्दी ) हो । वह जगदेकमल्ल भी कहलाता था।
यदि जगदेवको उदयादित्यका पुत्रका मान लें, जैसा कि भाटोंकी ख्यातोंसे प्रकट होता है, तो पृथ्वीराज चौहान और चन्देल परमर्दीकी लड़ाई तक उसका जीवित रहना असम्भव है । क्योंकि यह लड़ाई उदयादित्यके देहान्तके ८० वर्षसे भी अधिक समय बाद, वि० सं० १२३९ में, हुई थी। ___ पण्डित भगवानलाल इन्द्रजीका अनुमान है कि जगदेव, सिद्धराज जयसिंहकी माता मियणल्लदेवीके भतीजे, गोवाके कदम्बवंशी राजा जयकेशी दूसरेका, सम्बन्धी था । सम्भव है, वहीं कुछ समय तक सिद्धराजके पास रहनेके बाद, पेर्माडी (चौलुक्य राजा पेर्म) की सेवामें जा रहा हो और पेमांडीके सम्बन्धसे ही शायद परमार कहलाया हो। __ चालुक्य राजा पेर्म (जगदेकमल्ल) के एक सामन्तका नाम जगदेव था। वह त्रिभुवनमल्ल भी कहलाता था । वह गोवाके कदम्बवंशी राजा जयकेशी दूसरेकी मौसीका पुत्र था। माईसोरमें उसकी जागीर थी। उसका मुख्य निवासस्थान पट्टिपों बुच्चपुर-होंबुच या हुँच-( अहमदनगर जिले ) में था। उसका जन्म सान्तर-वंशमें हुआ था । वह वि० सं० १२०६ में विद्यमान था और पर्मेके उत्तराधिकारी तैल तीसरेके समय तक जीवित था ।
प्रबन्ध-चिन्तामणिका लेख भाटोंकी ख्यातोकी अपेक्षा पं० भगवानलाल इन्द्रजीके लेखको अधिक पुष्ट करता है ।
१२-लक्ष्मदेव । यह उदयादित्यका ज्येष्ठ पुत्र था । यद्यपि परमारोंके पिछले लेखों और ताम्रपत्रोंमें इसका नाम नहीं है, तथापि नरवर्माके समयके नागपुरके लेखमें इसका जिक्र है। यह लेख लक्ष्मदेवके छोटे भाईका
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