________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भारतके प्राचीन राजवंश
गाङ्गेयदेवका ही उत्तराधिकारी और पुत्र कर्णदेव था, जो इस वंशमें बड़ा प्रतापी राजा हुआ । इसीने १०५५ ई० के लगभग भीमसे मिलकर भोजपर चढ़ाई की । इसका हाल कीर्तिकौमुदी, सुकृतसङ्कीर्तन और कई एक प्रशस्तियोंमें मिलता है । परन्तु ट्याश्रयकाव्यके कर्ता हेमचन्द्रने भीमके पराजय आदिका वर्णन नहीं लिखा ।
तुरुष्कोंके साथ भोजकी लड़ाईसे मतलब मुसलमानोंके विरुद्ध लड़ा
___ कप्तान सी० ई० लूअर्ड, एम० ए० और पण्डित काशिनाथ कृष्ण लेलेने अपनी पुस्तकमें तुरुष्कोंकी लड़ाईसे महमूद गजनवीके विरुद्ध लाहोरके राजा जयपालकी मदद करनेका तात्पर्य निकाला है। परन्तु हम इससे सहमत नहीं । क्यों कि प्रथम तो कीलहानके मतानुसार उससमय भोजका होना ही साबित नहीं होता। दूसरे फरिश्ताने लिखा है कि केवल दिल्ली, अजमेर, कालिञ्जर और कन्नौजके राजाओंहीने जयपालको मदद दी थी। आगे चलकर इसी ग्रन्थकारने यह भी लिखा है कि महमूद गजनवीसे जयपालके लड़के आनन्दपालकी लड़ाई ३९९ हिजरी (वि० सं० १०६६, ई० स० १००९) में हुई थी। उसमें उज्जेनके राजाने आनन्दपालकी मदद की थी । सो यदि भोजका राजत्वकाल १००० ई० से माने, जैसा कि आगे चलकर हम लिखेंगे, तो उज्जेनके इस राजासे भोजका मतलब निकल सकता है। ___ तबकाते अकबरीमें लिखा है कि जब महमूद ४१७ हिजरी ( ई० स० १०२४) में सोमनाथसे वापिस आता था तब उसने सुना कि परमदेव नामका राजा उससे लड़नेको उद्यत है । परन्तु महमूदने उससे लड़ना उचित न समझा । अतएव वह सिन्धके मार्गसे मुलतानकी तरफ चला गया । इसपर भी पूर्वोक्त कप्तान और लेले महाशयोंने लिखा है (१) The Parmars of Dhar and Malwa.
For Private and Personal Use Only