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मालवेके परमार।
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. अन्तमें भोजने चौलुक्यों पर विजय पाई, यह बात उदयपुर (ग्वालियर ) की प्रशस्तिसे प्रकट होती है।
प्रबन्धचिन्तामणिकारने लिखा है कि भोजने गुजरात-अनहिलवाड़ाके राजा भीमकी राजधानी पर जब भीम सिन्धु देश जीतने में लगा था, अपने जैन सेनपाति कुलचन्द्रको सेनासहित हमला करने भेजा। उसकी वहाँ जीत हुई । वह लिखित विजयपत्र लेकर धाराको लौटा । भोज उससे सादर मिला । परन्तु गुजरातके प्रबन्ध-लेखकोंने इसका वर्णन नहीं किया।
कुमारपालकी बड़नगरवाली प्रशस्तिमें लिखा है कि एक बार मालवेकी राजधानी धारा गुजरातके सवारों द्वारा छीन ली गई थी। सोमेश्वरकी कीर्ति-कौमुदीमें भी लिखा है कि चौलुक्य भीमदेव ( प्रथम ) ने भोजका पराजय करके उसे पकड़ लिया था। परन्तु उसके गुणोंका खयाल करके उसे छोड़ दिया। सम्भव है, इसी अपमानका बदला लेने के लिए भोजने कुलचन्द्रको ससैन्य भेजा हो । पीछेसे इन दोनोंमें मैल हो गया था । यहाँतक कि भीमने डामर ( दामोदर ) को राजदूत ( Ambassador ) बनाकर भोजके दरबारमें भेजा था।
प्रबन्धचिन्तामणिसे यह भी ज्ञात होता है कि जब भीमको भोजसे बदला लेनेका कोई और उपाय न सूझो तब आधा राज्य देनेका वादा करके उसने कर्णको मिला लिया । फिर दोनोंने मिलकर भोजपर चढ़ाई की और धाराको बरबाद करके कल ली । परन्तु इस चढ़ाईमें अधिक लाभ कर्णहीने उठाया। ___ मदनकी बनाई 'पारिजातमञ्जरी' नामक नाटिकासे, जो धाराके राजा अर्जुनवर्माके समयमें लिखी गई थी, प्रतीत होता है कि भोजने युवराज (दूसरे ) के पौत्र गाङ्गेयदेवको, जो प्रतापी होने के कारण विक्रमादित्य कहलाता था, हराया।
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