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मालवेके परमार।
इसके बनाये हुए बहुतसे श्लोक काश्मीरके कवि क्षेमेन्द्रने अपनी
औचित्यविचारचर्चा' नामकी पुस्तकमें उद्धृत किये हैं। पर वेश्लोक नवसाहसाङ्कचरितमें नहीं हैं । इन श्लोकोंमें मालवेके राजाका प्रताप-वर्णन है । इनमेंसे एक श्लोकमें मालवेके राजाके मारे जानेका वृत्तान्त होनेसे यह पाया जाता है कि वे श्लोक राजा मुझसे ही सम्बन्ध रखते हैं । इससे अनुमान होता है कि उसने मुञ्जकी प्रशंसामें भी किसी काव्यकी रचना की होगी।
इस कविके अनेक श्लोक सुभाषितावलि, शार्ङ्गधरपद्धति, सुवृत्ततिलक आदि ग्रन्थोंमें उद्धृत हैं।
इसकी कविता बहुत ही सरल और मनोहर है । यह कवि नवसाहसाङ्कचरितके प्रत्येक सर्गकी समाप्ति पर अपने पिताका नाम मृगाडगुप्त लिखता हैं।
धनञ्जय। इसके पिताका नाम विष्णु था । यह भी मुझकी सभाका कवि था। इसने 'दशरूपक' नामका ग्रन्थ बनाया।
धनिक। यह धनञ्जयका भाई था । इसने अपने भाईके रचे हुए दशरूपक पर 'दशरूपावलोक ' नामकी टीका लिखी और 'काव्यनिर्णय ' नामका अलङ्कारग्रन्थ बनाया ।
इसका पुत्र वसन्ताचार्य भी विद्वान था । उसको राजा मुञ्जने तडार नामका गाँव, वि० सं० १०३१ में, दिया था । इस ताम्रपत्रका हम पहले ही जिक्र कर चुके हैं। इससे पाया जाता है कि ये लोग (धनिक और धनञ्जय ) अहिच्छत्रसे आकर उज्जेनमें रहे थे।
(१) इति श्रीमृगाङ्कसूनोः परिमलापरनाम्नः पद्मगुप्तस्य कृती नवसाहसाकूचरिते महाकाव्ये...............सर्गः । (२) Ind, Ant., VoL VI., p. 51.
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